#MNN@24X7 दरभंगा विश्वविद्यालय मैथिली विभाग में मैथिलीके चर्चित कथाकार,उपन्यासकार, कवि अनुवादक पंडित उपेंद्रनाथ झा व्यासकी 107वीं जयंती विभागाध्यक्ष प्रो दमन कुमार झा की अध्यक्षता में मनायी गई। अध्यक्षता करते हुए प्रो झा ने कहा कि व्यासजी मैथिलीमें अपेक्षाकृत कम कथा लिखे, किन्तु जो उन्होंने लिखा वह अभूतपूर्व एवं रोचक है। उनकी सबसे चर्चित कथा रूसल जमाय आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी तत्कालीन समय में थी। उनकी लेखन में सहजता और सरसता हृदयग्राही है। उनकी भाषा और वर्णन शैली अपूर्व है । दू गोट कथा संग्रह-विडम्बना आ भजना भजले, उपन्यास- कुमार आ दू पत्र, यात्रा संस्मरण- विदेश भ्रमण, और अनुवाद -विप्रदास, बाभनक बेटी आदि मत्वपूर्ण पोथी प्रकाशित है। उनकी दृष्टि मिथिलाके बच्चों की ओर भी गया। उनके लिए भी उन्होंने अभूतपूर्व पोथी लिख डाली ‘अक्षर परिचय’,जिसमें बच्चों के लिए अक्षर ज्ञान के साथ साथ सरस कविता का आनंद वे ग्रहण कर रहे हैं ।
प्रो अशोक कुमार मेहता कहलनि जे व्यासजी अभियंता रहथि, मुदा हुनक साहित्य देखि ई नहि कहल जा सकैत अछि जे ओ नीरस व्यक्ति छलाह। आधुनिकता परिवेश मे रहितो ओ अपन परम्परा कें नहि बिसरलाह।हुनका देखिते मैथिलक व्यक्तित्व समक्ष भ जाइत छल।
डॉ सुनीता कुमारी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दू पत्र उनकी अपूर्व उपन्यास है, इस पुस्तक को 1969 ई मे साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। इसमें दो संस्कृति का अपूर्व चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
डॉ अभिलाषा कुमारी ने कहा कि व्यास जी मैथिली साहित्य में बहुविध साहित्यकार के रूप में स्थापित है। इन्होने कथा, कविता उपन्यास,खंडकाव्य, यात्रा -वृतांत के लेखन तथा अनुवाद कार्य से मैथिली साहित्य को समृद्ध किया है। साहित्य अकादेमी का प्रथम अनुवाद पुरस्कार विप्रदास अनुदित पुस्तक पर व्यास को प्राप्त हुआ था।
इस अवसर पर डॉ सुरेश पासवान, डॉ प्रमोद कुमार पासवान, भाग्यनारायण झा, निरेन्द्र कुमार और विभागीय छात्र छात्राएं उपस्थित थे।