#MNN24X7 आजुक दिन मिथिला मे नववर्ष के रूप में शीतलता के लोक पाबनि ‘जुड़ि शीतल’ मनेबाक परंपरा अछि. जुड़ि शीतल के मतलबे होईत अछि शीतलताके प्राप्ति। ताहि कारणें आजुक दिन मिथिला मे रस्ता-पएरा, गाछ-वृक्ष सबकें पटेबाक सेहो परंपरा अछि। एहि सं वर्षा ऋतु एबा तक गाछ सब मे नियमित पानि देबाक शुरुआत सेहो भऽ जाइ। एकरा एहि मौसम में धूरा गर्दा सं बचबाक साधन के रूप में सेहो देखल जा सकैत अछि. कईएक ठाम बाट पर पानि क छिड़काव पूरा एक महीना तक चलैत रहैत अछि. जुड़ि शीतल के मध्य छोट सं पैघ, सबटा गाछ के पटेबाक परंपरा अछि. एहि परंपरा के बदलैत मौसम में वनस्पति संरक्षण दिस ध्यान आकर्षण सेहो मानल जा सकैत अछि.

देखल जाइ त मिथिला के लोकपाबनि सभ प्रकृति सं बड्ड-बेसी जुड़ल अछि। जहिना मिथिलांचल में लोकसब छठि में सूर्य आ चौरचन में चंद्रमा के पूजा करैत छथि, तहिना जुड़ि शीतल में जल-माटि आ गाछ-वृक्ष यानि संपूर्ण प्रकृति के प्रमुखता दऽ पूजा कैल जाइत अछि। संगहि एहि प्रचंड गर्मी में जगतक शीतलता के कामना सेहो कैल जाइत अछि. दू दिनक एहि पाबनि में पहिल दिन सतुआइन होइत अछि, तऽ दोसर दिन धुरखेल. धुरखेलऽक दिन समस्त मैथिलजन रस्ता-पएरा ईनार, पोखरि सबहक साफ-सफाई करैत छथि। ओकर बाद प्रारंभ होयत अछि धुरखेल आ कादो-माटिक खेल।आजुक दिन मैथिलानी चूल्हा के कम स कम एक सांझ आराम अवश्ये दैत छथिन्ह।

अपना सबहक परंपरा के अनुसारे मिथिलांचल में जुड़ि शीतल के दिन चूल्हा नहि जराओल जाइत अछि. पाबनि के एक दिन पहिने सत्तुआनीऽक राति बनलाहा बडी भात के प्रसाद सबसं पहिने भोग लगाओल जाइत अछि. एकर बाद संपूर्ण घरक मोख पर बसिया बड़ी आ भात चढ़ेबा परंपरा सेहो अछि। एकरा बसिया पाबिन सेहो कहल जाइत अछि. सबसं पहिने पाबनिक प्रारंभ पैघ सबहक द्वारा छोट समांगकेँ भोरे माथा पर आंजुर सं पानि द जुड़बैत सं होइत अछि। आ कहैत छथिन्ह जुरैल रहू।

पिछला किछु दशक में आधुनिकीकरण के कारणे ग्लोबल वार्मिंग एहेन चीज सब बढैत जा रहल अछि. ऐहन में पर्यावरण के संरक्षित केनाई अत्यंत आवश्यक भऽ जाइत अछि. जुड़ शीतल पाबनि मुख्य रूपे प्रकृति सं जुड़ल अछि आजुक दिन जे लोक सब एक दोसर के देह पर माटि लगबैत छथि, एकरा जौं स्वास्थ्य के दृष्टिएँ देखल जाईऽत गर्मी में रौद सं हुअ बला चर्म रोग सबसं बचावऽक लेल माटिक लेप अत्यंत प्रभावी अछि.एकरा सब क देखैत ई जरूरी अछि जे एकर उचित प्रचार-प्रसार कैल जाइ. किया कि वर्षों पुरान एहि परंपरा कऽ बारे में अधिकांश लोकसब के एखनहुं ठीक सं नहि बूझल छन्हि। मूल रूप सं ई पाबनि प्रकृति के प्रति प्रेम, सद्भाव आ संरक्षण के प्रेरणा दैत अछि. लोकसबहक जागरूकता बढ़ा के नहि केवल आइये बल्कि एकरा माध्यमे अपना सभ आब बला पीढ़ि क सेहो पर्यावरण संरक्षण के दिशा में एकटा नीक विकल्प द सकैत छी.

आइ मिथिला मे सेहो इ पाबनि आब सिमटाईत जा रहल अछि। अखबार आ पत्रिका मे सेहो एहि पाबनिक संबंध मे कोनो जानकारी नहि अछि। हुनकर सेहो मजबूरी छैन्ह जे जुड-शीतल कोनो ब्रांड नहि बनि सकल अछि। इ पाबनि नै कोनो पैघ नेता मना रहल छैथ आ नहिये कोनो कलाकार या खिलाड़ी। फेर कोना के लिखल या देखाउल जाएत। एहन मे एहि पाबनिक बारे मे कहबाक लेल नहि त अखबार मे जगह अछि आ नहिये चैनल सब के समय। मुदा एहि पाबनिक रोचकता आ वैज्ञानिकता एकरा मरबा स बचेने अछि। जौं एहि पाबनि के मिथिलाक आन पाबनि जेनां छठि आ सामा चकेबा जेकां प्रचारित कैल जाए, त एहि अद्भूत पाबनि पर पूरा विश्व आकर्षित भ सकैत अछि। मूलरूप स इ पाबनि सूचिता अर्थात साफ-सफाई स संबंध रखैत अछि, मुदा एकर मुख्‍य कारक ग्‍लोवल वार्मिन स बचब अछि। जय मिथिला।