#MNN@24X7 दरभंगा के संस्कृति में आजुक दिन के महत्व बड़ खास अछि।उत्सवक एहि श्रृखंला क बीच, दीपावली के अगिला दिन गोवर्धन पाबनि मनेबाक परंपरा रहल अछि। इ पाबनि ओना त संपूर्ण राष्ट्र में मनाओल जाइत अछि मुदा मिथिला मे,त एकरा बहुत धूमधाम आ उत्साहक संग मनाओल जाईत अछि।अपना सबहक किसानी में पशुधन केर महत्व के देखैत आजुक दिन हुनके समर्पित अछि।गाम घर, में जत कतहुँ गौ शाला वा माल-जाल’क घर रहैत अछि ओत साफ सफाई आ पूजा पाठक विशेष व्यवस्था कैल जाएत अछि।कहल जाइत अछि जे भगवान श्रीकृष्ण प्रकृति क प्रेमी छलाह। हुनकर एहि लीला क उद्देश्य वा सनेश यैह छल जे कृषि(खेती) आ गौ क रक्षा आवश्यक अछि।कोनो राष्ट्र’क समृद्धि क’ लेल ओकर विकास’क लेल।आई काल्हि त वैज्ञानिक सब सेहो जैविक खेती पर जोर द रहल छथि किया की जैविक खेतीये स्वस्थ शरीर’ क निर्माण क सकैत अछि आ स्वास्थ शरीरे स्वस्थ राष्ट्र’क।
अपन देश भारत कृषि प्रधान देश रहल अछि।प्राचीन समय में कृषि प्रधान देश में राजा लोकनिक संपत्ति गौ धन सं आंकल जाएत छल। जाहि राजा लग जतेक गौधन,ओ राष्ट्र ओतेक ऐश्वर्य शाली मानल जाइत छल।प्रकृति में अनेकानेक पशु वास करैत ऐछ मुदा गौ एकटा एहेन पशु थीक जकर विकारो अपना सबहक लेल औषधिये क काज करैत अछि।गौ के दूध- दही-गोबर-गौ मूत्र-घी सबटा अपना सबहक लेल काजक अछि। ताहि कारणें अपना सबहक कृषि क आधार गौ अछि आ हिनकर पूजा क परंपरा सेहो अपना सबहक संस्कृति में अछि।
आजुक दिन समस्त गौ पालक अपन-अपन पशुधन कें स्नानादि क पश्चात हुनका ऊपर चित्रकारी क’हुनकर सिंह में तेलक मालिश, हुनकर गरदामी,मुखारी आ ठेका बदलबाके संगे-संग हुनकर गर्दैनमें घंटी आदि बदलबाक सेहो परंपरा रहल अछि। जाहि सं हुनकर स्वरूप निखैर जैत छइन्ह। गौशाला वा माल’क घर के बाहर गोबर सं गोवर्धन पहाड़क आकृति के निर्माण कएल जाएत अछि तत्पश्चात् पशुधन कें पूजा अर्चना कैल जाइत छईन्ह। दूपहर बाद एकटा मैदान वा च’र में समस्त पशुधन के एकत्रित कैल जाएत छईन्ह जत हूरा-हूरी नामक परंपरा क निर्वाह कैल जाएत अछि। एहि मे पशुधन सबहक मध्य एकटा छोट सूअर के राखल जाइत छल। जकरा एतेक पशुधन सबहक मध्य स बचि क निकालबाक रहैत छलै।
गोवर्धन पूजा के पौराणिक खिस्सा -कहल जाइत अछि जे गोवर्धन पूजा के दिन एहि कथा के अवश्ये पढि आ सूनि।धार्मिक मान्यता सबहक अनुसारे एक बेर देवता क राजा इंद्र के अपन शक्ति सबहक बेस घमंड भ गेल छलन्हि। इंद्र’क यैह घमंड के दूर करबाक वास्ते भगवान कृष्ण अपन लीला क रचना कएलन्हि।एक बेर गोकुल में सब लोक तरह-तरह के पकवान बना रहल छलैथ आ हर्ष उल्लास के संग नाच-गाना क’ रहल छलैथ। ई सब देख के भगवान अपन मां यशोदा जी सं पूछलथिन्ह जे अहाँ सब लोक मिल के कोन उत्सव’क तैयारी क’ रहल छी? भगवान कृष्ण’ क सवाल पर मां यशोदा हुनका कहलनि जे हम सब देवता के राजा इंद्र’क पूजा के तैयारी क रहल छी। तखन भगवान कृष्ण हुनका सं पूछलथिन्ह जे, अपना सब हुनकर पूजा किया करैत छी?
यशोदा मैया हुनका कहलखिन्ह जे, भगवान इंद्र देव के कृपा होइन त नीक वर्षा होइत अछि जाहि सँ अपना सबहक अन्न केर पैदावार नीक होईत अछि आ अपना सबहक पशुधन के च’र सेहो भेट जाइत अछि। माता कए गप्प सूईन भगवान कृष्ण कहलनि जे, नहि अपना सब के गोवर्धन पहाड़क पूजा करबाक चाही किया की अपना सबहक गाय त’ ओतहि च’र चरैत अछि आ ओतहि लगलाहा गाछ वृक्ष सबहक कारणें हुनकर बरसात स रक्षा सेहो होइत अछि।भगवान कृष्ण के बात क माइन के गोकुल वासी गोवर्धन पहाड़क पूजा कर लगलाह ई सब देखि के इंद्र देव क्रोधित भ गेलाह आ ओ एहि बात कें अपन अपमान बुझलनि। क्रोध वश ब्रजवासी सब सं बदला लेबाक लेल ओ मूसलाधार बारिश शुरू क देलन्हि।ओहि दिनक बरसात एतेक विनाशकारी छल जे गोकुल वासी हड़बडा गेलन्हि।ई देखि भगवान श्रीकृष्ण गोवर्धन पहाड़ के अपन आंगुर पर उठा क ठाढ़ भ गेलाह आ उपस्थित सबटा ग्रामीण एकरा नीचाँ आबि कए ठाढ़ भ गेलाह ।
भगवान इंद्र 7 दिन तक लगातार बरसात कएलन्हि आ 7 दिनों तक भगवान कृष्ण एहि तरहेँ पहाड़ के उठा क रखने रहलैथ। भगवान कृष्ण एकहु टा गोकुल वासी आ जानवर सब के नुकसान नहि पहुंच देलथि, आ नहिये पानि में भीज’ देलनि। तखन भगवान इंद्र के अहसास भेलन्हि जे हुनका सं मुकाबिला कर बला कुनो साधारण मनुष्य त नहि भ सकैत अछि। जखन हुनका ई बात’क पता चललन्हि जे हुनका संग मुकाबिला कर बला स्वयं भगवान विष्णु कें अवतार श्री कृष्ण छथि तखन ओ अपन गलती के लेल हुनका सं क्षमा याचना कयलन्हि आ मुरलीधर के पूजा क’के हुनका स्वयं भोग लगेलन्हि आ मानल जाइत अछि जे तहिये सं गोवर्धन पूजा क प्रारंभ भेल।
गोवर्धन पाबनि एहि बेर 5 नवंबर के मनाऒल जा रहल अछि।आजुक दिन गोवर्धन पहाड़ आ भगवान श्री कृष्ण के पूजा केर विधान अछि आ घर सब में भिन्न भिन्न तरहक पूआ-पकवान सेहो बनाओल जाइत अछि।अपना देश’क कृषि आधारित व्यवस्था क देखैत एहि पाबनिक महत्व और बेसी बढ़ि जाएत अछि।एखन त कृषि वैज्ञानिक लोक सेहो जैविक खेती पर जोर द रहल छथि ओकर महत्व बूझि रहल छथि।