सीनेट की 46वीं बैठक में मान्य सदस्यों का किया स्वागत

2024 तक सभी परीक्षाओं के अद्यतन होने का दिया भरोसा

#MNN@24X7 दरभंगा। कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के दरबार हॉल में आयोजित सीनेट की 46वीं बैठक में उपस्थित सभी मान्य सदस्यों को सम्बोधित करते हुए कुलपति डॉ शशिनाथ झा ने कहा कि किसी विशिष्ट अवसर पर स्वागत करने की हमारी प्राचीन परम्परा रही है। इसी सर्वमान्य परम्परा का अनुपालन करते हुए सर्वप्रथम हम इस महत्वपूर्ण अवसर पर सम्पूर्ण विश्वविद्यालय परिवार की ओर से सीनेट की इस बैठक की अध्यक्षता कर रहे परमसम्मानित महामहिम कुलाधिपति सह राज्यपाल राजेन्द्र विश्वनाथ आर्लेकर महोदय का स्वागत करते हैं। अध्यक्ष के रूप में विराजमान प्रथमतः महामहिम कुलाधिपति महोदय की गौरवमयी एवं प्रेरणास्पद समुपस्थिति से हम सभी आनन्दित हैं, उत्साहित हैं। आप जैसे शिक्षानुरागी, कुशल एवं अनुभवी प्रशासक, सनातन संस्कृति के संरक्षक महानुभाव का जानकी की जन्मभूमि मिथिला की पवित्र हृदयस्थली में अवस्थित संस्कृत विश्वविद्यालय में हम पुनः पुनः स्वागत, अभिनन्दन एवं वंदन करते हैं।

इसके बाद बिहार विधान मंडल के माननीय सदस्यगण, राजभवन, बिहार सरकार, पूर्व कुलपतियों, प्रति कुलपतियों, दाता सदस्यगण, विभिन्न संस्थानों के प्रतिनिधियों समेत सभी सदस्यों का अभिवादन करते हुए कुलपति डॉ झा ने कहा कि वर्ष 2020 व 21 में आई कोविड जैसी महामारी ने हमारी शैक्षणिक व्यवस्था को पूरी तरह से दुष्प्रभावित कर दिया जिसे अभी तक पटरी पर नही लाया जा सका है। यही कारण है कि शैक्षणिक सत्र भी विलम्ब से चल रहे हैं। उपशास्त्री, शास्त्री और आचार्य की 2021 तक की ही परीक्षा का आयोजन हम कर पाए हैं। पारम्परिक पाठ्यक्रमों की 2022 की भी परीक्षा का आयोजन जून-जुलाई 2023 तक सम्पन्न हो जाएगी। इसी तरह 2023 की भी परीक्षा इसी वर्ष के अंत तक विशेष परिस्थिति में कर लेने की संभावना है।

उक्त जानकारी देते हुए विश्वविद्यालय के पीआरओ निशिकांत ने बताया कि कुलपति ने सदन को भरोसा दिलाया कि 2024 तक सभी परीक्षाएं अद्यतन हो जाएगी। इसी क्रम में वीसी ने कहा कि नैक मूल्यांकन के लिए अनुदान राशि मिले तो तेजी से कार्य आगे बढ़ाया जाएगा।वहीं संस्कृत विश्वविद्यालय को केंद्रीय विश्वविद्यालय बनाने की भी मांग वीसी ने की।

वहीं मान्य सदस्यों से सहयोग की अपेक्षा करते हुए कुलपति डॉ झा ने कहा कि इस विश्वविद्यालय की आय का आंतरिक श्रोत बहुत कम है। इस कारण अनेक विकासात्मक कार्य बाधित होते हैं। यहां निःशुल्क शिक्षा के कारण उसकी भरपाई नही हो सकती है।इसलिए राज्य सरकार से राशि प्राप्त कराने में आपलोग सहयोग करें।इसी क्रम में विश्वविद्यालय में रखी करीब छह हजार दुर्लभ पांडुलिपियों के डिजिटाइजेशन, सम्पादन एवं प्रकाशन कराने को कुलपति ने आवश्यक बताया।