#MNN@24X7 दरभंगा, आज 18 मार्च को स्थानीय नागेन्द्र झा महिला महाविद्यालय, लहेरियासराय में “मिथिला इतिहास संस्थान” का चतुर्थ द्वी वार्षिक राष्ट्रीय दो दिवसीय सम्मेलन प्रारंभ हुआ. सम्मेलन का उद्घाटन कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर शशि नाथ झा, संस्थान के निवर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र, वर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर इम्तियाज अहमद, सचिव प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर एवं आगत सदस्यों ने दीप प्रज्ज्वलित कर किया. स्वागत गीत डाॅक्टर ममता ठाकुर ने प्रस्तुत किया.

अपने उद्धाटन भाषण में प्रोफेसर शशि नाथ झा जी ने भारत में संस्कृत में जैमिनी लिखित ‘इतिहास समुच्चय’ से इतिहास लेखन की चली परम्परा को हर्ष एवं कल्हण तक की रचनाओं की चर्चा की और आगे ऐसे और शोध कार्य करने की आवश्यकता पर बल दिया.

दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अजित कुमार ने मिथिला की शानदार संस्कृति को उद्धृत करते हुए कहा कि स्थानीय इतिहास लेखन को परिपुष्ट किया जाना चाहिए और मिथिला इतिहास संस्थान इस कार्य को बहुत शिद्दत से कर रहा है जो अपने आप में एक मिसाल है. बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय की प्रोफेसर बिन्दा परांजपे ने कहा कि मैं विभागीय कार्यों से बराबर दरभंगा आती रही हूँ, किंतु आज इस सम्मेलन का हिस्सा बनकर बहुत ही रोमांचित हूँ.

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के इतिहास के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर केशव मिश्र ने मैथिली भाषा में अपने उद्बोधन में स्पष्ट किया कि मैं स्वयं इसी क्षेत्र का हूँ और आज इस सम्मेलन का हिस्सा बनकर बहुत खुश हूँ. मेरी दिली ख्वाहिश है कि इस क्षेत्र का समग्र इतिहास सामने आना चाहिए और मेरे हिसाब से मिथिला इतिहास संस्थान इस काम को करने में सक्षम भी है और कार्यरत भी है. दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जे० एन० सिंह ने भी स्थानीय इतिहास का समग्र अध्ययन और लेखन को आवश्यक माना. बिहार इतिहास परिषद के सचिव प्रोफेसर दयानंद राय ने मिथिला इतिहास संस्थान के अभी तक के सफर को शानदार बताया और आगामी समय में गम्भीर लेखन की आशा व्यक्त की.

मिथिला इतिहास संस्थान के निवर्तमान अध्यक्ष प्रोफेसर रत्नेश्वर मिश्र ने मिथिला की ज्ञान परम्परा की चर्चा की और मिथिला के इतिहासकारों का आह्वान किया कि इस क्षेत्र में गम्भीर शोधकार्य करें. मिथिला के इतिहास के विभिन्न क्षेत्रों में अभी भी बहुत शोध कार्य करने की आवश्यकता है और आशा है कि अगली पीढ़ी के इतिहासकारों द्वारा यह काम चलता रहेगा.

अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रोफेसर इम्तियाज अहमद ने मिथिला में बिखरे पड़े उर्दू एवं परसियन दस्तावेजों की चर्चा की और इस आधार पर मिथिला के इतिहास के लेखन की आवश्यकता पर बल दिया. शेख कबीर लिखित अफसाना ऐ शहान की चर्चा करते हुए इसे मिथिला के इतिहास के लिए आवश्यक स्रोत बतलाया. मुल्ला तकिया के बयाज, गुलाम हुसैन तत्तबात की शैर अल मुताखरीन, गुलाम हुसैन सलीम की रियाज उस सलातीन, मुर्तजा हसन की हकीकत एल अकलीम आदि पुस्तकों की चर्चा की और इनके आधार पर मिथिला का इतिहास लेखन पर बल दिया. बिहारी लाल फितरत की आयना ए तिरहुत और अयोध्या प्रसाद बहर की रियाज ए तिरहुत से मिथिला की समाजिक और आर्थिक स्थिति का पता चलता है. खासकर बहर ने दरभंगा और मुजफ्फरपुर शहरों पर विस्तार से लिखा है. वहीं फितरत ने इस क्षेत्र के रइसों, जमींदारों, पंडितों, एवं सामान्य जनों के बारे में विस्तार से लिखा है. जहाँ परसियन स्रोत राजनीतिक इतिहास पर प्रकाश डालते हैं वहीं उर्दू स्रोत आर्थिक सामाजिक इतिहास पर प्रकाश डालते हैं और आवश्यकता है कि इन स्रोतों का भरपूर उपयोग इतिहास लेखन में हो.

धन्यवाद ज्ञापन डॉ अमिताभ कुमार ने किया और मंच संचालन संस्थान के सचिव प्रोफेसर धर्मेन्द्र कुमर ने किया.
इस सत्र में सम्मेलन की स्मारिका एवं पिछले सम्मेलन की विवरणिका का विमोचन किया गया. सर्वोत्तम युवा शोध का विजय कुमार ठाकुर पुरस्कार डाक्टर शंकरदेव झा को एवं मदनेश्वर मिश्र पुरस्कार डाक्टर दिनेश कुमार गुप्ता को दिया गया.

राष्ट्र गान के साथ उद्घाटन सत्र समाप्त हुआ।