श्रेय लेने की होड़ में अटक रही एम्स की स्थापना: गामी
स्थायी निदान के लिए अब जरूरी हो गया है पृथक मिथिला राज्य का निर्माण: कमलाकांत
संविधान में शामिल भाषाओं के महत्व को बीपीएससी में कम करना सरकार के धृष्टता की पराकाष्ठा: जयशंकर झा
#MNN@24X7 दरभंगा। मिथिला व मैथिली के विकास के लिए अब याचना नहीं, रण होगा। उक्त बातें सोमवार को विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित पत्रकार वार्ता में संस्थान के महासचिव डॉ बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कही।
बिहार लोक सेवा आयोग की 68वीं प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की संरचना में किए गए संशोधन में व्याप्त विसंगतियों को उजागर करते हुए उन्होंने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं को इस परीक्षा की वैकल्पिक विषयों की सूची से हटाया जाना और मेधा सूची में इन विषयों के प्राप्तांक को नहीं जोड़े जाने का प्रावधान न्याय संगत नहीं है। ऐसा होने से भाषा साहित्य के प्रतिभावान छात्रों को न सिर्फ काफी नुकसान होगा बल्कि ऐसी भाषाओं के व्यवहार में नहीं होने से धीरे-धीरे वे अपना अस्तित्व खो बैठेंगे।
उन्होंने कहा कि बिहार लोक सेवा आयोग के इस निर्णय को लेकर वे न सिर्फ आम मैथिली भाषी लोगों के बीच जाएंगे बल्कि उचित न्याय के लिए सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन का बिगुल फूंकने के साथ ही नैसर्गिक न्याय पाने के लिए अदालत का दरवाजा भी खटखटाएंगे।
उन्होंने मौके पर जन जागरण अभियान की घोषणा करते हुए कहा कि 24 जनवरी को सहरसा से यह अभियान शुरू होगा और विभिन्न प्रखंड मुख्यालयों में जन जागरण अभियान आयोजित होने के साथ ही 31 जनवरी को संसद भवन पर घेरा डालो डेरा डालो प्रदर्शन किया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस अभियान के तहत मैथिली सहित अन्य भाषाओं के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे। जिन्हें बीपीएससी की परीक्षा में वैकल्पिक विषय की अर्हता से बाहर कर दिया गया है।
डॉ बैजू ने कहा कि भाषाई आंदोलन के साथ-साथ संस्थान की ओर से एम्स के नाम पर मिथिला के लोगों के साथ की जा रही ठगी के साथ ही हिंदू धर्म ग्रंथ को लेकर हाल के दिनों में हो रही सियासत की राजनीति के विरुद्ध भी लोगों को एकजुट किया जाएगा।
मौके पर मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने बीपीएससी द्वारा मैथिली सहित अन्य भाषाओं के साथ किए जा रहे कुठाराघात को आत्मघाती बताते हुए मिथिला एवं मैथिली के विकास के नाम पर हो रही ओछी राजनीति के विरुद्ध दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर सभी राजनीतिक दलों एवं अन्य संगठनों को एक मंच पर आकर इसके विरुद्ध आवाज बुलंद करने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि मिथिला एवं मैथिली के विकास में आ रही बाधाओं के स्थायी निदान के लिए अब अलग मिथिला राज्य का निर्माण जरूरी हो गया है।
डॉ जयशंकर झा ने कहा कि देव भाषा संस्कृत को बीपीएससी के पाठ्यक्रम में वैकल्पिक विषय के रूप में मान्यता रद्द किया जाना बिहार सरकार की धृष्टता की पराकाष्ठा है। उन्होंने कहा कि बिहार की सरकार वोट की राजनीति के नाम पर एकला चलो की रणनीति में कामयाब नहीं हो पाएगी। उनके इस निर्णय के विरुद्ध ईट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा।
मधुबनी जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष शीतलांबर झा ने सरकार के मिथिला मैथिली विरोधी निर्णय के खिलाफ सार्वजनिक कार्यक्रमों में सरकार का वहिष्कार करने के साथ-साथ मुख्यमंत्री सचिवालय का अनिश्चितकालीन घेराव करने का प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि जनता के जनप्रतिनिधियों को भी आने वाले चुनाव में अपना हिसाब चुकता करने के लिए तैयार रहना होगा।
पूर्व विधायक अमरनाथ गामी ने कहा कि अज्ञान और चाटुकार लोगों की गिरफ्त में आकर बिहार की सरकार लोगों को मुद्दों से भटकाने को लेकर अनेक गलतियों पर गलतियां किए जा रही है और हममें से ही कुछ लोग अपने स्वार्थ सिद्धि के लिए उनकी हां में हां मिलाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज श्रेय लेने की होड़ में जहां एम्स के निर्माण कार्य को अटकाया जा रहा है, वही स्वतंत्र साहित्य, व्याकरण और लिपि से संपन्न भारत की प्राचीनतम भाषाओं की अस्मिता के साथ भी खिलवाड़ करने से बिहार की सरकार बाज नहीं आ रही है। उन्होंने कहा जीन भाषाओं को वैकल्पिक विषय के रूप में यूपीएससी और अन्य राज्यों की लोक सेवा आयोग में मान्यता मिली हुई है, उसे बिहार सरकार मनमानी तरीके से कैसे हटा सकती है?
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि अपनी अज्ञानता के वजह से मानव श्रम के पलायन का कोढ़ झेल रहे बिहार में सरकार के इस आत्मघाती कदम से विद्वता एवं प्रतिभा के पलायन का बीजारोपण किया जा रहा है। जिसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। उन्होंने विभिन्न सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों से सम्मान के सही हकदार लोगों को पाग चादर पहनाए जाने का सुझाव देते हुए मिथिला मैथिली के विकास के लिए सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन चलाने का आह्वान किया।
पत्रकार वार्ता में उदय शंकर मिश्र, मित्र नाथ झा, बालेंदु झा, हेमंत कुमार झा, चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई, विनोद कुमार झा, डॉ गणेश कांत झा, गणपति झा, दुर्गा नन्द झा, आशीष चौधरी, पुरुषोत्तम वत्स आदि ने भी अपने विचार रखे।