कंपनी और समाज को क्या चाहिए, वर्तमान शिक्षा में नहीं रखा गया है इसका ख्याल- प्रो कुरील।
शिक्षक छात्रों के भीतर ऐसी सोच पैदा करें, जिससे वे समाज के साथ दुनिया की कायनात की भी बदल सकें तस्वीर- प्रो मुश्ताक अहमद।
सामाजिक एवं शैक्षणिक परिवर्तन में शिक्षकों का योगदान अहम- प्रो अशोक कुमार मेहता।
बीएड (नियमित) विभाग में आइसीएसएसार प्रायोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का हुआ शुभारंभ।
#MNN@24X7 दरभंगा। ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में कोई भी परिवर्तन हमेशा से छात्रों को केन्द्र में ही रखकर ही किया गया है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति- 2020 भी छात्रों को लेकर ही केन्द्रित है। परिवर्तन हमेशा से गंभीर विषय रहा है। देश के केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में नई शिक्षा नीति लागू है। राज्य स्तरीय कई विश्वविद्यालयों में अभी नई शिक्षा नीति- 2020 लागू नहीं हुआ है। मुझे पूरा विश्वास है कि वर्ष 2023 तक ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय में नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए यह दो दिवसीय सेमिनार रोडमैप तैयार करने का कार्य करेगा। यही इस सेमिनार की सबसे बड़ी सफलता होगी। राष्ट्रीय शिक्षा नीति का क्षेत्र अति व्यापक है।
उक्त बातें बी एड (नियमित) विभाग के तत्वावधान में आइसीएसएसआर प्रायोजित ‘समाज में शिक्षकों की भूमिका की परिकल्पना/राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020: विश्वगुरु भारत’ विषयक दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार के उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करते कुलपति प्रो सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने कही। प्रो सिंह ने कहा कि पाठ्यक्रम एक होने के बावजूद शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके में एकरूपता नहीं होती है। व्यवस्था बदलने के बावजूद विविधता बनी रहती है। पढ़ाई के लिए कभी भी संसाधन की कमी नहीं होती है। यह निर्भर इस बात करता है कि शिक्षकों की विद्वता और छात्रों में पढ़ने के लिए तत्परता कितनी है। व्यवस्था परिवर्तन के साथ ही सोच बदलने की भी ज्यादा जरूरत है।
कुलपति ने कहा कि केन्द्रीय और राज्य स्तरीय विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रम और पढ़ाने की तरीके में जो बदलाव है, उस कमी को पाटने के लिए नई तकरीब पर कार्य करने की जरूरत है। अच्छे शिक्षकों के प्रति छात्र स्वत: श्रद्धावान हो जाते हैं।
उद्घाटन सत्र में मुख्य अतिथि के रूप में सेमिनार को संबोधित करते हुए महात्मा गांधी उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, दुर्ग, मध्य प्रदेश के कुलपति प्रो रामशंकर कुरील ने कहा कि साधारण आदमी के बीच शिक्षा को लाने की जरूरत है। देश में आज भी एमबीबीएस/इंजिनियरिंग आदि की पढ़ाई साधारण आदमी की पहुंच से दूर है। इसी दूरी को कम करने के उद्देश्य से नई शिक्षा नीति- 2020 का प्रारूप तैयार किया गया है। एनइपी का मकसद ही एजुकेशन फॉर ऑल है। नई शिक्षा नीति पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वर्ष 2040 तक हर महाविद्यालयों को मल्टी डिसिप्लिनरी बनाने की योजना है। देश में व्यावसायिक अध्ययन पर ध्यान देने की अधिक जरूरत है।
प्रो. कुरील ने कहा कि ज्ञान विकसित करने से केवल समाज को ही लाभ नहीं मिलेगा। उस ज्ञान को छात्र तक पहुंचाने के लिए सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को रोडमैप तैयार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि आज की शिक्षा समाज के साथ मेल नहीं खा रही है। कंपनी और समाज को क्या चाहिए, वर्तमान शिक्षा में इसका ख्याल नहीं रखा गया है। लेकिन, नई शिक्षा नीति- 2020 भारत केन्द्रित नीति है। भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए बहुत कार्य करने की जरूरत है। इसके लिए जरूरी है कि शिक्षक सही से बच्चों को शिक्षा दें। साइंटिफिक और टेक्निकल शिक्षा के साथ समाज में सामाजिक बदलाव भी आना चाहिए। उन्होंने कहा कि मिथिला का पौराणिक इतिहास गौरवमय रहा है। यह वाद- विवाद का बहुत बड़ा केन्द्र था।
कुलसचिव प्रो मुश्ताक अहमद ने कहा कि सेमिनार का विषय ही सभी को चिंतन करने पर मजबूर कर रहा है। पहले भारत किस शिक्षा पद्धति के कारण विश्वगुरु था? आज इस पद्धति में आकाश- पाताल का अंतराल कहां से आ गया है, अब शिक्षकों का कार्य है कि वे छात्रों के भीतर ऐसी सोच पैदा करें, जिससे वे समाज के साथ दुनिया की तस्वीर बदल सकें। इस सेमिनार के बाद अपने विश्वविद्यालय़ में नई शिक्षा नीति लागू करने के लिए पहल तेज करेंगे।
दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो अशोक कुमार मेहता ने कहा कि इस सेमिनार से सर्द मौसम में भी बसंत ऋतु का अनुभूति हो रहा है। शिक्षक समाज का आधार होता है। इस सेमिनार में सामाजिक एवं शैक्षणिक परिवर्तन में शिक्षकों का क्या योगदान होगा, इस पर विचार- विमर्श करने के बाद यहां से जो प्रकाशपुंज निकलेगा, वह भविष्य़ में भारत को विश्वगुरु स्थापित करने का कार्य करेगा।
बी एड (नियमित) विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अरविन्द कुमार मिलन ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज शिक्षा की परिचर्चा में ज्ञान आधारित समाज की परिकल्पना है। भारत को फिर से विश्वगुरु बनाने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उसी कड़ी में यह सेमिनार एक प्रयास है।किसी भी समाज में शिक्षकों का एक अलग दर्जा है।देश के भविष्य को आकार देने वाले शिक्षक ही होते हैं। शिक्षा के स्तर में गिरवाट आयी है। छात्रों का उत्थान करना समाज और सरकार की जिम्मेदारी है। इसमें क्या बेहतरी की जा सकती है, इस सेमिनार से ये चीजें बाहर निकल कर आएगी।
अतिथियों ने सेमिनार की स्मारिका का विमोचन भी किया। उद्घाटन सत्र में मंच संचालन डॉ. निधि वत्स ने किया। सेमिनार में डॉ. शुभ्रा, डॉ. कुमारी स्वर्णरेखा, डॉ. मिर्जा रुहुल्लाह बेग, कुमार सत्यम, गोविंद कुमार, डॉ. जयशंकर सिंह, डॉ. रेश्मा तबस्सुम, किरण कुमारी, प्रसेनजित रॉय, डॉ. कुमारी बबीता रानी, सुनील कुमार गुफ्ता, राजू कुमार, सुभागलाल दास, डीन, विभागाध्यक्ष, प्रो अजीत कुमार सिंह, प्रो अरुण कुमार सिंह, डा अमरेन्द्र शर्मा, प्रो रमेश झा, प्रो मंजू राय, डा महेश प्रसाद सिन्हा, डा आर एन चौरसिया, डा मो जिया हैदर, डा दिवाकर झा, डा कामेश्वर पासवान, डा सुरेश पासवान सहित विश्वविद्यालय के अनेक शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मी और सैकड़ों की संख्या में रिसर्च स्कॉलर एवं डेलीगेट्स शामिल थे।
कार्यक्रम का प्रारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन से हुआ, जबकि संगीत विभाग के छात्रों द्वारा विश्वविद्यालय कुलगीत एवं बिहारगीत प्रस्तुत किए गए। अतिथियों का स्वागत स्मृतिचिह्न एवं पुस्तकों से किया गया। सेमिनार की उप संयोजिका डा निधि वत्स के संचालन में आयोजित उद्घाटन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन विभागीय शिक्षिका डा किरण कुमारी ने किया। तत्पश्चात अनेक समानांतर तकनीकी सत्रों का भी संचालन किया गया।