कालिदास की पैनी नजर मिथिला की परंपराओं, संस्कारों, संस्कृतियों तथा इतिहास पर रही- प्रो देवनारायण।
#MNN@24X7 दरभंगा। कोई भी रचनाकार अपनी संस्कृति, परंपरा, इतिहास तथा संस्कार आदि की दृष्टि से ही काव्य की रचना करता है। इस दृष्टि से मिथिला की परंपराओं, संस्कारों, संस्कृतियों तथा इतिहास पर महाकवि कालिदास की पैनी नजर रही है। मिथिला के लोग सदा से धन- दौलत के पीछे नहीं, बल्कि आत्मज्ञान के इच्छुक रहे हैं। महाकवि कालिदास मिथिलावासी की तरह ही आत्मज्ञान की चाहत रखते थे। कालिदास क्रांतदर्शी अद्वितीय महाकवि थे। 2500 वर्षों के बाद भी वैसा दूसरा कवि आजतक उत्पन्न नहीं हो पाया है। वे मिथिला या भारत के ही नहीं, बल्कि विश्व के महाकवि थे, जिनका प्रभाव देश- विदेश के कवियों एवं अन्य सभी व्यक्तियों पर भी पड़ रहा है। कालिदास भूत में प्रासंगिक कवि थे, वर्तमान में हैं एवं भविष्य में भी प्रासंगिक कवि बने रहेंगे। उक्त बातें कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रोफेसर देवनारायण झा ने मिथिला विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर संस्कृत विभाग तथा डा प्रभात दास फाउंडेशन के संयुक्त तत्वावधान में “महाकवि कालिदास और मिथिला” विषयक राष्ट्रीय सेमिनार में मुख्य वक्ता के रूप में कही।
प्रोफेसर झा ने कहा कि कालिदास की सात रचनाओं में उनके मिथिलावासी होने के अनेक स्पष्ट प्रमाण मिलते हैं। कालिदास परम शैव थे, क्योंकि मिथिला के घर- घर में शिव भगवान की पूजा- अर्चना होती है। वहीं मिथिला के प्रत्येक घर में काली की पूजा होने के कारण उनका कालिदास नाम पड़ा। मेघदूत के प्रथम श्लोक में ही कालिदास ने जनक तनया का उल्लेख कर अपने मिथिला प्रेम को दर्शाया है।
वहीं कुमारसंभवम् में लिखा है कि पार्वती अपने हाथ पर निर्मित शिव की पूजा करती है तथा मिथिला में हर जगह शिव एवं पार्वती के मंदिर हैं, जिसका वर्णन कालिदास ने कुमारसंभव के मंगलाचरण में किया है जो मिथिला की परंपरा रही है। कालिदास ने कोशी नदी की चर्चा की है जो मिथिला की प्रमुख नदी है। मधुबनी जिला के उच्चैठ में कालिदास का डीह है, जिसे सरकार ने भी चिह्नित किया है।
उन्होंने कहा कि अभिज्ञानशाकुंतल में कालिदास ने शकुंतला की विदाई के समय मिथिला की ही तरह बेटी विदाई के समय माता-पिता द्वारा दिए जाने वाले उपदेशों का वर्णन किया है, जबकि रघुवंशम् में रघु के होने वाले सभी 16 संस्कार मिथिला के ही दिख पड़ते हैं। प्रो देवनारायण ने अनेक आंतरिक एवं बाह्य साक्ष्यों के आधार पर कालिदास को मिथिलावासी सिद्ध करते हुए कहा कि उनके ग्रंथों में मिथिला की कई रूपों में विस्तार से वर्णन देखा जा सकता है।
मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो ए के बच्चन ने उद्घाटन संबोधन में कहा कि कालिदास पहले मूर्ख थे, परंतु भगवती को प्रसन्न कर वे विद्वान कवि बने। वह भगवती स्थान मधुबनी के उच्चैठ में ही स्थित है।
इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डा घनश्याम महतो, डा भक्तिनाथ झा, डा नंदकिशोर ठाकुर, सुजय पांडे आदि ने भी विचार व्यक्त किया, जबकि डा शकुंतला कुमारी, डा आनंद कुमार प्रियदर्शी, प्रशांत कुमार झा, मधुसूदन शर्मा, राजकुमार गणेशन, अनिल कुमार सिंह, सत्यम कुमार, अफजल खान, ज्योत्सना कुमारी सहित एक सौ से अधिक व्यक्ति उपस्थित थे, जिन्हें अतिथियों के हाथों प्रमाण पत्र प्रदान किया गया।
अतिथियों ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया, जबकि आगत अतिथियों का स्वागत पाग, चादर एवं पौधा से किया गया।
वहीं संस्कृत- शिक्षक डा नंद किशोर ठाकुर ने संस्कृत में स्वागत गान किया। संस्कृत- प्राध्यापक सह सेमिनार के संयोजक डा आर एन चौरसिया के संचालन में आयोजित कार्यक्रम में अतिथियों का स्वागत विभागीय शिक्षिका डा ममता स्नेही ने किया, जबकि धन्यवाद ज्ञापन फाउंडेशन के सचिव मुकेश कुमार झा ने किया।