#MNN@24X7 मखाना की खेती, उत्पादन एवं प्रसंस्करण के संबंध में ली विस्तृत जानकारी।

दरभंगा 16 सितंबर : कृषि मंत्री,बिहार सरकार सुधाकर सिंह ने मखाना अनुसंधान केंद्र का मुआयना कर मखाना की खेती, उत्पादन प्रसंस्करण से संबंधित विस्तृत जानकारी ली।
   
उन्होंने मखाना अनुसंधान केंद्र में मखाना का हार्वेस्टिंग और मखाना का पौधा देखा। अनुसंधान केंद्र में लगे हुए कमल के पौधे भी देखें और उन्होंने पूछा कि कमल की खेती यहां क्यों की जाती है? तो वहां के वैज्ञानिक इंदु शेखर सिंह ने बताया कि कमल फूल के बीज का औषधीय उपयोग किया जाता है, आयुर्वेद उद्योग में भी यह जाता है। साथ ही पूजा पाठ में भी इसके बीज का प्रयोग किया जाता है।
  
उन्होंने मखाना के पौधे को दिखाया। मखाना के बीज को दिखाया गया। मखाने को कीचड़ से निकाल कर भी उसमें लगे बीज को दिखाया गया और बताया गया कि इसकी खेती के लिए डेढ़ से दो फीट पानी आवश्यक होता है। मखाने की प्रोसेसिंग व चलनी को भी दिखाया गया। विभिन्न प्रकार के मखाना के बीज को दिखलाया गया।
      
मखाना लावा मशीन जो अनुसंधान केंद्र में चलायमान है उसे भी दिखाया गया। साथ ही लावा बनते हुए भी दिखाया गया।
      
मंत्री महोदय ने सभी गतिविधि को देखते हुए मशीन की विस्तृत जानकारी ली और पूछा कि किसान के लिए यह मशीन क्यों लाभदायक है, तो बताया गया कि इस मशीन से किसान के स्वास्थ्य पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। यह स्वास्थ्य के अनुकूल है।   
     
इसके उपरांत वे मखाना केंद्र के ऊपरी तल के सामुदायिक कक्ष में गयें, जहां डॉक्टर इंदु शेखर सिंह द्वारा पावर प्वाइंट प्रस्तुतिकरण के माध्यम से मखाना के संबंध में विभिन्न जानकारी दी गयी और बताया गया कि माननीय नीतीश कुमार, तत्कालीन केंद्रीय कृषि मंत्री के प्रयास से 28 फरवरी 2002 को राष्ट्रीय मखाना अनुसंधान केंद्र,दरभंगा के रूप में इसकी स्थापना की गई थी, लेकिन 2005 में तत्कालीन डायरेक्टर जनरल मंगला राय साहब द्वारा इसे पटना के आईसीआर रिसर्च कंपलेक्स फ़ॉर ईस्टर्न रीजन, पटना में मर्ज कर दिया गया। इसके उपरांत यहाँ से महानिदेशक का पद समाप्त हो गया और इसके बाद यहां जो 41 पद सृजित किए जाने थे, वह भी नहीं हो पाया। शुरू से यहाँ जो 3 -4 आदमी थे, वहीं रह गए। अभी वैज्ञानिक और तकनीकी पदाधिकारी मिलाकर कुल 8 व्यक्ति कार्यरत हैं।
     
मंत्री जी ने इसका विस्तृत विवरण उपलब्ध कराने को निर्देश दिया ताकि इस पर वे आगे कार्रवाई कर सकें।
     
डॉ इंदु शेखर ने बताया कि अभी मखाना के बीज के दो किस्में हैं। पहला जो मखाना अनुसंधान केंद्र से 2013 में विकसित कर निकला “स्वर्ण वैदेही” और दूसरा भोला पासवान शास्त्री कृषि कॉलेज, पूर्णिया से निकला हाउस “सबौर मखाना” है।
  
उन्होंने बताया कि मखाना के विकास के लिए मखाना के किसानों को 72 हजार 500 रुपये प्रति हेक्टर बिहार सरकार द्वारा अनुदान दिया जा रहा है। पिछले वर्ष कुल 81 किसानों को यह अनुदान डीबीटी के माध्यम से प्रदान किया गया।
 
मखाना की खेती के संबंध में जानकारी प्राप्त होने के उपरांत माननीय मंत्री जी ने कहा कि मखाना की खेती को वेटलैंड व चौर में फैलाया जाए, ताकि किसानों को अतिरिक्त लाभ प्राप्त हो सके। इसके लिए उन्होंने किसानों को प्रोत्साहित करने के निर्देश दिए।
    
उन्होंने कहा कि जिन खेतों में धान की अच्छी फसल होती है, वहां मखाना की खेती करने के बजाय उन खेतों में जहां धान की अच्छी खेती नहीं होती है वहां पानी की व्यवस्था कर मखाना की खेती कराई जाए। इससे किसानों को अतिरिक्त लाभ प्राप्त होगा तथा मखाना को भी विकसित किया जा सकेगा।
     
माननीय मंत्री ने कहा कि किसानों को लाभ मिल सके साथ ही वातावरण अनुकूल रह सके इसके लिए चौर में ही मखाना की खेती करने हेतु प्रोत्साहित किया जाए। उन्होंने कहा कि इस मखाना अनुसंधान केंद्र के विकास के लिए उनसे जो बन पड़ेगा वे करेंगे, वह अपनी बात केंद्र सरकार तक पहुंचाएंगे।
       
इस अवसर पर जिला कृषि पदाधिकारी संजय कुमार सिंह, दरभंगा के संयुक्त निदेशक शस्य, वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ मनोज कुमार, वैज्ञानिक डॉ बीआर जाना, तकनीकी अधिकारी अशोक कुमार, धीरज प्रकाश और आलोक कुमार उपस्थित थे।