नोएडा।उत्तर प्रदेश का चमक दमक वाला शहर नोएडा मेट्रो के संचालन को पर्यावरण की मंजूरी की चाह में शनिवार को सुप्रीम कोर्ट ने रोकने से इनकार कर दिया।सुप्रीम कोर्ट की तरफ से कहा गया कि मेट्रो रेल परियोजना पूरी हो चुकी थी और पहले से ही चल रही थी।SC नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के 31 मई 2016 के आदेश के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई कर रही थी। इस दौरान SC ने कहा कि सभी मेट्रो रेल परियोजनाओं को उचित पर्यावरण प्रभाव आकलन करने के बाद पर्यावरण मंजूरी मिल चुकी है।
कानून के सवाल को खुला रखते हुए न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ ने कहा कि दिल्ली और नोएडा में मेट्रो सेवाओं का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर जनता द्वारा किया जा रहा है।मेट्रो का काम भी पूरा हो चुका है,मेट्रो रेल चल रही है।ऐसे में घड़ी को वापस नहीं रखा जा सकता है और यह बड़े जनहित में भी नहीं होगा।
सुनवाई के दौरान SC ने कहा कि मामले के विशेष तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए एनजीटी के आदेश पर कार्रवाई नहीं की जा सकती है।कानून के प्रश्न यदि कोई हो विशेष रूप से रेल परियोजना या मेट्रो रेल परियोजना के संबंध में, पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता है या नहीं और कानून के अन्य प्रश्न, यदि कोई हैं तो उचित तरीके से विचार करने के लिए खुला रखा गया है।ऐसे में कार्यवाही और वर्तमान आदेश को किसी भी अन्य मामलों या मामलों में मिसाल के तौर पर उद्धृत नहीं किया जाएगा।
आपको बता दें कि एनजीटी ने माना था कि सभी मेट्रो रेल परियोजनाओं को उचित पर्यावरण प्रभाव आकलन करने के बाद पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता होती है।नोएडा मेट्रो जिसके निर्माण को इससे पहले चुनौती दी गई थी। पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना 2006 की अनुसूची 8 (बी) के तहत आता है, जो इमारतों निर्माण और विकास परियोजनाओं से संबंधित है। जिन्हें पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करना अनिवार्य है।यह आदेश पर्यावरणविद विक्रांत तोंगड द्वारा दायर एक याचिका पर पारित किया गया था। जिसमें नोएडा मेट्रो रेल कॉरपोरेशन (NMRC) को उचित पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन करने के बाद नोएडा से ग्रेटर नोएडा तक अपनी परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी प्राप्त करने के लिए निर्देश देने की मांग की गई थी।
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) से यह स्पष्ट है कि नोएडा से ग्रेटर नोएडा तक मेट्रो रेल की परियोजना के लिए कुल भूमि की आवश्यकता लगभग 2,84,762.01 वर्ग मीटर है। हालांकि कोई पर्यावरण प्रभाव आकलन (ईआईए) रिपोर्ट तैयार नहीं की गई थी। सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत परियोजना के अभिलेखों का निरीक्षण कर आवेदक द्वारा इस तथ्य की पुष्टि की गयी।
(सौ स्वराज सवेरा)