योग से सभी प्रकार के मनोविकारों से मिलती है मुक्ति : प्रो. मुरलीमनोहर पाठक

भारतीय दर्शन की आत्मा है योग : प्रो. जी. एस. आर. कृष्णमूर्ति

योग जीवन का अनिवार्य अंग : डॉ. अनिल कुमार मंडल

योग से ही मन का नियंत्रण संभव : डॉ. कृष्णकांत

#MNN@24X7 भारतीय दर्शन के महत्वपूर्ण अंग के रूप में योग का विकास होता रहा। महर्षि पतंजलि ने सूत्र शैली में पातंजल योगसूत्र की रचना कर सम्पूर्ण विश्व को मानवता के कल्याण हेतु अनुपम उपहार प्रदान किया, जिसका विस्तार बाद के दार्शनिकों ने व्याख्याओं के माध्यम से किया। उसीका परिणाम है कि आज सम्पूर्ण विश्व को योग क्रिया का लाभ मिल रहा है।

उक्त बातें कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शशिनाथ झा ने सी. एम. कॉलेज में ऑनलाइन एवं ऑफलाइन माध्यम से आयोजित पातंजल योगदर्शन (व्यासभाष्य) विषयक दस दिवसीय कार्यशाला के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए कहा। उन्होंने योगशास्त्र के विभिन्न पक्षो पर प्रकाश डालते हुए कार्यशाला के महत्व को प्रकाशित किया। विशिष्ट अतिथि के रूप में जुड़े राष्ट्रिय संस्कृत विश्वविद्यालय, तिरुपति, आंध्रप्रदेश के कुलपति प्रो. जी. एस. आर. कृष्णमूर्ति ने योग दर्शन को भारतीय दर्शन की आत्मा के रूप में रेखांकित करते हुए सांख्य एवं योग के साहचर्य पर अपना व्याख्यान दिया।

दूसरे विशिष्ट अतिथि के रूप में एम. एल. एस. कॉलेज, सरिसबपाही के प्रो. डॉ. कृष्णकान्त झा ने मिथिला के आचार विचार एवं व्यवहार में अनुस्यूत योगशास्त्रीय पक्षो पर बल देते हुए कहा कि योगमात्र से ही मन का नियंत्रण संभव है, चूँकि मन ही मनुष्य के बंधन एवं मुक्ति का कारण बनता है इसलिए मन को वश में करने हेतु योग अत्यंत आवश्यक है। सी. एम. कॉलेज के प्राचार्य सह सारस्वतातिथि डॉ. अनिल कुमार मंडल ने योग के व्यावहारिक पक्ष पर प्रकाश डालते हुए संस्कृत विभाग को भविष्य में भी इस तरह के कार्यक्रम में सभी प्रकार के प्रशासनिक सहयोग देने का आश्वासन दिया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए श्रीलाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. मुरली मनोहर पाठक ने कहा कि पातंजल योगदर्शन आज अपना क्रियात्मक स्वरूप प्राप्त कर सम्पूर्ण विश्व के अधिकतर लोगों की दैनन्दिन क्रिया में शामिल हो गया है। जिस प्रकार भारतीयता की परिकल्पना भारतीय दर्शन के बिना नहीं हो सकती, उसी प्रकार योग भी आज भारतीयता का पहचान बन गया है। इस तरह के कार्यशाला से सम्पूर्ण समाज लाभान्वित होता है, अत: सम्पूर्ण संयोजक संस्थाएं बधाई के पात्र हैं।

श्रीनाथ संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य एवं कार्यक्रम के सह संयोजक श्री राजेश चतुर्वेदी द्वारा किए गए वैदिक तथा श्री वशिष्ठ द्विवेदी द्वारा किए गए पौराणिक मंगलाचरण एवं सरस्वती वंदना के साथ अतिथियों द्वारा दीपप्रज्वलित कर प्रारम्भ हुए कार्यक्रम में स्वागतभाषण दर्शनपीठाध्यक्ष प्रो. केदार प्रसाद परोहा ने तथा कार्यशाला का विवरण सांख्ययोग विभागाध्यक्ष प्रो. मार्कण्डेय नाथ तिवारी ने किया ।

डॉ. संजीत कुमार झा के संचालन में हुए समापन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन प्रो. महेश प्रसाद सिलोड़ी ने किया। सामूहिक शान्तिपाठ से सम्पन्न हुए इस कार्यक्रम में राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के सभागार में शताधिक तथा सी. एम. कॉलेज में पचास से अधिक लोक भौतिक रूप से उपस्थित हुए , जबकि सौ से अधिक प्रतिभागी ऑनलाइन रूप से जुड़े रहे।