-प्रसव पूर्व जांच कर सुरक्षित एवं संस्थागत प्रसव में वृद्धि कराना ही पीएमएसएमए का मुख्य उद्देश्य: आरपीएम।
-गर्भवती महिलाओं के प्रसव पूर्व जांच को लेकर चलाया गया विशेष अभियान।
-सुरक्षित एवं संस्थागत प्रसव के लिए चिकित्सीय परामर्श जरूरी।

#MNN@24X7 मधुबनी, 21 नवंबर। जच्चा-बच्चा की सुरक्षा के लिए गर्भावस्था के दौरान प्रसव पूर्व जांच (एएनसी) कराना आवश्यक है। स्वास्थ्य विभाग द्वारा प्रसव पूर्व जांच से मातृ शिशु मृत्यु दर को कम करने का प्रयास लगातार किया जा रहा है। प्रत्येक महीने 09 एवं 21 तारीख को जिले के सभी सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों पर प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत विशेष कैंप का आयोजन किया जाता है। इस दौरान क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक नजमुल होदा के द्वारा रहिका सीएससी का निरीक्षण किया गया.

इस दौरान उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान का मुख्य उद्देश्य गर्भवती महिलाओं को गुणवत्तापूर्ण प्रसव पूर्व जांच की सुविधाएं उपलब्ध कराने के साथ उन्हें बेहतर परामर्श देना है। गर्भावस्था के दौरान 4 प्रसव पूर्व जांच से प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताओं में कमी आती  है। प्रसव पूर्व जांच के अभाव में उच्च जोख़िम गर्भधारण की पहचान नहीं हो पाती है। इससे प्रसव के दौरान जटिलताओं की संभावना काफ़ी बढ़ जाती है।

इस अभियान की सहायता से प्रसव के पहले ही संभावित जटिलताओं की जानकारी प्राप्त हो जाती है। प्रसव पूर्व जांच में एनीमिक महिलाओं को आयरन एवं फोलिक एसिड की दवा देकर नियमित रूप से सेवन करने की सलाह दी जाती है।

गर्भवती महिलाओं के प्रसव पूर्व जांच को लेकर चलाया गया विशेष अभियान:

प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर गर्भवती महिलाओं के प्रसव पूर्व जांच को लेकर विशेष अभियान चलाया गया। स्वास्थ्य केंद्रों पर जांच के दौरान भ्रूण की सही स्थिति का पता लगाने, एचआईवी जैसे गंभीर संक्रमित बीमारियों से नवजात शिशुओं के बचाव व एनीमिक होने पर प्रसूता का सही उपचार किया जाता है।

सुरक्षित एवं संस्थागत प्रसव के लिए चिकित्सीय परामर्श जरूरी:

गर्भावस्था के दौरान खून जांच, यूरिन जांच, ब्लड प्रेशर, हीमोग्लोबिन एवं अल्ट्रासाउंड जांच अनिवार्य रूप से कराना होता है। बहुत सी गर्भवती महिलाओं में प्रसव के दौरान 7 ग्राम से कम खून का रहना, गर्भावस्था के दौरान मधुमेह की बीमारी का होना, एड्स संक्रमित, अत्यधिक वजन होना, पूर्व में सिजेरियन प्रसव का होना, उच्च रक्तचाप की शिकायत होना जैसी शिकायतें होने से उच्च जोख़िम गर्भधारण की श्रेणी में आता है। एचआरपी के मामले में प्रसूता को अत्यधिक चिकित्सकीय देखभाल की आवश्यकता होती है। गर्भधारण के तुरंत बाद या गर्भावस्था के पहले तीन महीने के अंदर पहला एएनसी जांच निहायत ही जरूरी है। दूसरी जांच गर्भावस्था के चौथे या छठे महीने में होती है तो वहीं तीसरी जांच सातवें या आठवें महीने में व चौथी जांच गर्भधारण के नौवें महीने में जरूरी होती है।

शिशु-मृत्यु दर में कमी लाने की है बेहतर व्यवस्था :-

जिला कार्यक्रम प्रबंधक डॉ दयाशंकर निधि ने बताया सरकार द्वारा गर्भवती महिलाओं की स्वास्थ्य जाँच के लिए की गई यह व्यवस्था शिशु-मृत्यु दर में कमी लाने की बेहतर व्यवस्था है। सरकार की यह व्यवस्था मातृ और शिशु मृत्यु दर को कम करने की दिशा में अच्छी पहल है। इससे ना सिर्फ सुरक्षित प्रसव होगा, बल्कि शिशु-मृत्यु दर पर विराम लगेगा। इसके साथ ही जच्चा-बच्चा दोनों को अनावश्यक परेशानियाँ का सामना नहीं करना पड़ेगा.