मिथिला लोक चित्रावली एवं सचित्र विद्वतपरिचय संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित।

#MNN@24X7 दरभंगा, विवाह और ग्राम्य जीवन के परिदृश्य को एकदम जीवंत उकेरती पुस्तक ‘ मिथिला लोक चित्रावली ‘ एवम पूरे देश स्तर के प्रसिद्ध विद्वानों से मौजूदा पीढ़ी को अवगत कराती पुस्तक ‘ सचित्र विद्वतपरिचय ‘ का शुक्रवार को संस्कृत विश्वविद्यालय में लोकार्पण किया गया।

संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित इस दोनों पुस्तकों का कुलपति डॉ शशिनाथ झा, पूर्व कुलपति डॉ रामचन्द्र झा, मैथिली के नामचीन विद्वान डॉ भीमनाथ झा, डॉ बौआ नन्द झा,डॉ सुरेश्वर झा, डॉ श्रीपति त्रिपाठी, डॉ दिलीप कुमार झा, डॉ इंद्रनाथ झा समेत कई विद्वानों ने सामूहिक रूप से विमोचन करते हुए हर्ष व्यक्त किया। चित्रकार पंडित गिरिधर झा विकल विशारद द्वारा लिखित लोकचित्रावली का सम्पादन उनके पुत्र डॉ इंद्रनाथ झा ने किया है। यह पुस्तक बहुत पहले लिखी गई थी लेकिन प्रकाशित अभी हाल में विश्वविद्यालय द्वारा किया गया है।

उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि मैथिली में तैयार की गई इस पुस्तक को नौ खण्डों में बांटकर मिथिला की समस्त गतिविधियों व उसके संस्कारों को चित्र के साथ संजीदगी से उद्धृत किया गया है जिसमें वैवाहिक चित्रावली, प्रेम विलसलीला, जनेऊ निर्माण प्रक्रिया, ग्राम्य जीवन परिदृश्य, ग्राम्य पारिवारिक परिदृश्य, कृषि सम्बन्धी चित्र, माछ सम्बन्धी चित्र, नायक नायिका के परिदृश्य तथा गृहस्त आश्रम के वस्तु प्रमुख हैं। महत्वपूर्ण बातें यह है कि प्रत्येक खण्ड में मिथिला की संस्कृति व लोकाचार को अलग अलग तरीके से दिखाया गया है और उसके बारे में कहीं विस्तार से तो कहीं संक्षिप्त में वर्णन भी किया गया है।

इस पुस्तक में मिथिला के विभिन्न पौराणिक परिदृश्यों व अवसरों के करीब 135 चित्रों की प्रस्तुति की गई है।
वहीं दूसरी ओर धर्मशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ दिलीप कुमार झा व व्याकरण विभागाध्यक्ष डॉ दयानाथ झा द्वारा लिखित पुस्तक सचित्र विद्वत परिचय में ख्याति प्राप्त करीब तीन दर्जन विद्वानों की तस्वीर उसके परिचय के साथ लगाई गई है। बताया गया कि ये विद्वान मूल रूप से 1850 से 1980 के बीच के हैं और सभी के चित्र संस्कृत विश्वविद्यालय के सभाभवन में भी लगाए गए हैं।इसी क्रम में कुलपति ने कहा कि दोनों पुस्तक खासकर मिथिला के संदर्भ में अलौकिक व संग्रहनीय है। यह बेहद ही खुशी की बात है कि विश्वविद्यालय ने 150 से अधिक पुस्तकों का प्रकाशन कर लिया है। लोक चित्रावली में मिथिला का पौराणिक लघुरूप दिखने को मिलता है।

वहीं साहित्यकार डॉ भीमनाथ झा ने कहा कि विकल जी विशिष्ट साहित्यकार व अद्भुत कलाकार के सम्मिलन थे। पुस्तक में सभी रसों के चित्रों को स्थान दिया गया है। उन्होंने विकल जी प्रशंसा में तैयार पद्यांशों को भी सुनाया। इसी क्रम में उन्होंने सचित्र विद्वतपरिचय की प्रस्तुति को भी सराहा। लोकार्पण के मौके पर डॉ दिनेश झा, डॉ पवन कुमार झा, डॉ अनिल कुमार झा समेत कई विद्वान उपस्थित थे।