महाकवि विद्यापति के जन्म ‘दरभंगा’ जिला के ‘बिस्फी’ गाँव में भेल छल। दरभंगा सं जे रेलगाड़ी उत्तर-पश्चिम दिस जैत अछि ओहि रस्ता में एकटा स्टेशन अछि ‘कमतौल’ । कमतौल सं लगभग चारि मील पर ई गाम स्थित अछि।महाकवि विद्यापति के पूर्वज बहुतो दिन सं एतहि बास करैत छलाह। एहि गाम’क पहिलुका नाम ‘गढ़-बिसपी’ छल। हिनका ई गाम, हिनकर आश्रय-दाता राजा शिवसिंह दिस सं, उपहारस्वरूप भेटल छलैन्ह। एहि दान’क ताम्रपत्र सेहो प्राप्त भेल अछि।महाकवि के प्रसिद्ध विद्वेषी पंडित केशव मिश्र यैह दान दिस लक्ष्य क ‘अति लुब्ध नगर याचक’ कहि हिनकर उपहास करैत छलखिन्ह हिनकर वंशधर बहुतो दिन तक अही गाम में बसैत छलाह । मुदा बाद मे एहि गाम के छोइड़ अही जिला के ‘सौराठ’ नामक गाम मे बसि गेलाह ।
हिनका बंग-देशिय सिद्ध करबाक सेहो बहुत कोशिश भेल। जाहि समय बंगाल मे चैतन्य महाप्रभु क अविर्भाव भेल छल ओहि समय कवि कोकिल केर रचना मिथिला क गली गली के रसप्लावित करैत बंगाल केर गुंजा रहल छल। श्री चैतन्य के कान में सेहो एकर मधुर ध्वनि पड़ल आ ओ ताकि ताकि क हिनकर पद गाब लगलाह। श्री चैतन्य अवतारी पुरुष छलाह एहि अलौकिक पद क गावैत गावैत प्रेमवश ओ मुर्छित भ जैत छलाह। हुनकर बादो रविन्द्र नाथ ठाकुर तक सब बंगाली लोक हुनकर आभा सं अलौकित भेलाह। फलतः विद्यापति बंगाली भाई लोकनि कए रग रग में प्रवेश क गेलाह। आब त बंगाली लोकनि ईहो बिसरि गेलथि जे विद्यापति बंगाली नई मैथिल छथि। ओ बंगाले म’ हुनकर निवास स्थान, बंगाली राजा शिवसिंह आ रानी लखीमा देवी सेहो तैक लेलनि।
ओहि समय’क एकटा बंग्ला लेखक ईहो अंदाजा लगा लेने रहथि जे विद्यापति विद्या अध्ययन क लेल मिथिला गेल हेता जत हुनका प्रतिभा सं प्रसन्न भ शिवसिंह हुनका गाम द देने हेथिन। मुदा इ सब गप फुसी साबित भेल। बंग्ला मे राजकृष्ण मुखोपाध्याय पहिले पहिल बंग दर्शन नामक पत्रिका में ई प्रकाशित केलैन जे विद्यापति बंगाली नई मैथिल छलाह। एकर प्रमाण में ओ ताम्र पत्र सेहो देलैन। फेर त बुझू समूचा बंगाल मे कोलाहल मैच गेल। मुदा बहुतो बंग विद्वान ई मानलैन जे विद्यापति मिथिलावासी छलाह आ हिनकर भाषा मैथिली छन्हि।संगहि अपना सबके धन्यवाद देबाक चाही ग्रियर्सन साहब’क जे विद्यापति के बिहार’क सिद्ध केलैन।
आभार💐🙏