#MNN@24X7 दरभंगा। आज दिनांक 21.02.2023 को विश्वविद्यालय हिंदी, मैथिली, संस्कृत, उर्दू एवं बंगला विभाग तथा आई.क्यू.ए.सी के संयुक्त तत्त्वावधान में अंतरराष्ट्रीय मातृभाषा दिवस समारोह का आयोजन विश्वविद्यालय संगीत एवं नाट्य विभाग के प्रेक्षागृह में किया गया।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल हुईं ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा की माननीया प्रति कुलपति प्रो० डॉली सिन्हा ने इस अवसर पर कहा कि यूनेस्को ने अंतरराष्ट्रीय मातृभाषाओं को समर्पित कर यह दिन घोषित किया है। उन्होंने एक सीमांत अमरीकी नागरिक की व्यथा को साझा किया जो अपनी भाषा और संस्कृति को छोड़ने के लिए मजबूर है और अंग्रेजी को अपनाना जिसकी नियति बन गयी है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रतिदिन कई मातृभाषाएं समाप्त हो रही हैं, लेकिन सच्चाई यह है कि जो मातृभाषाएं अभी प्रचलन में हैं और बची हुई हैं उनमें भी 45 फीसदी भाषाओं पर खतरा मंडरा रहा है।

प्रो० सिन्हा ने कहा कि रोजगार के लिए भले हिंदी-अंग्रेजी सीखी जाय लेकिन अपनी मातृभाषा को बचाये रखना बहुत आवश्यक है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज तमाम विश्व स्तरीय संस्थानों के होते हुए भी हमारा देश एक विश्व स्तरीय वैज्ञानिक पैदा नहीं कर पा रहा है, जबकि पूर्वकाल में एक से बढ़ कर एक वैज्ञानिकों ने इस देश की शक्ति को पूरे संसार के सामने रखा था। तब वे वैज्ञानिक अपनी मातृभाषा में सोचते और कार्य करते थे लेकिन आज के संस्थान अंग्रेजी के बोझ तले छात्रों को इस कदर दबा देते हैं कि वे वैज्ञानिक खोजों से ही दूर हो जाते हैं। अपनी बातों को विराम देते हुए उन्होंने कहा की मातृभाषा को बचाना एक चुनौती है लेकिन हमें बांग्लादेश से सीखना चाहिए और वहीं की तर्ज पर अपनी भाषा के लिए लड़ना चाहिए।

हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो० राजेन्द्र साह ने सभी आगत अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हम जब किसी को भूल रहे होते हैं तब एक विशेष दिन उसे याद करने के लिए निर्धारित कर देते हैं।

प्रो० साह ने कहा कि आज निश्चित ही संकट की घड़ी है क्योंकि इस दौर में कई मातृभाषाओं का लुप्त हो जाना व्यथित करता है। आज मातृभाषा के प्रति उपेक्षा का भाव दिखता है। जिस भाषा में हम अपनी नैसर्गिक भावना को व्यक्त कर सकते हैं उसे क्यों और किस प्रकार छोड़ा जा रहा है, इसपर विचार किये जाने की आवश्यकता है। मातृभाषाओं के क्षरण का एक महत्त्वपूर्ण कारक प्रो० साह ने शहरीकरण को भी माना।नयी पीढ़ी अपनी मातृभाषा से विमुख होती जा रही है।

इस अवसर पर प्रो० दमन कुमार झा ने कहा कि मिथिला क्षेत्र की मातृभाषा मैथिली है। किसी भी जाति, धर्म, सम्प्रदाय के लोग जो मिथिला क्षेत्र में वास करते हैं वे मैथिली भाषा में ही अपने सभी कार्य करते हैं। मैथिल कोकिल विद्यापति की पंक्तियों को उद्धरित करते हुए उन्होंने मातृभाषा की महत्ता को स्थापित करने का प्रयास किया।

हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो० चन्द्रभानु प्रसाद सिंह ने इस अवसर पर सभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि कभी ढाका में बंगला मातृभाषा के समर्थन में जो आंदोलन हुआ था उसे आगे चलकर यूनेस्को ने भी मान्यता दी। मातृभाषा के समर्थन में रचित भारतेंदु हरिश्चंद्र की पंक्तियों को उद्धरित करते हुए उन्होंने कहा कि इतने वर्षों पहले लिखी गयी इन पंक्तियों के बावजूद हम अंग्रेजी के मोह से उबर नहीं सके हैं। प्रो० सिंह ने जोड़ देकर कहा कि भाषा का विकास तब ही होगा जब वह विज्ञान और प्रौद्योगिकी के साथ तारतम्य बनाएगी। मैथिली विभाग का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वे अंग्रेजी में पत्राचार करते हैं, ऐसे में मैथिली स्वाभाविक रूप से पीछे जाएगी।

मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो० ए०के बच्चन ने इस अवसर पर कहा कि वाद-विवाद प्रतियोगिता हो या निबंध प्रतियोगिता, मातृभाषा को लेकर प्रतिभागियों में जो जुनून दिखा वह अभूतपूर्व था। मातृभाषा की महत्ता को स्थापित करते हुए उन्होंने कहा कि वह भाषा जो हमें अपनी माँ से मिलती है, उसका हमें हमेशा सम्मान करना चाहिए। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि बंगाल के लोग हों या दक्षिण प्रदेशों के लोग हों, अपनी मातृभाषा को लेकर गर्व का भाव रखते हैं लेकिन बिहार जैसे हिंदी प्रदेशों में मातृभाषा को लेकर शर्म का भाव रहता है।

कार्यक्रम में ‘बीमार’ शीर्षक नाटक का मंचन, मातृभाषा को समर्पित गीत का गायन, जन्मभूमि को समर्पित नृत्य और कुलगीत का गायन विश्वविद्यालय संगीत एवं नाट्य विभाग के छात्र-छात्राओं द्वारा किया गया।

17 और 20 फरवरी को आयोजित निबंध और वाद-विवाद प्रतियोगिता के विजेताओं को भी इस कार्यक्रम में सम्मानित किया गया। मौके पर मैथिली विभागाध्यक्ष प्रो० रमेश झा,हिंदी विभाग के डॉ० सुरेंद्र प्रसाद सुमन, डॉ० आनन्द प्रकाश गुप्ता,डॉ० मंजरी खरे, संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डाॅ०घनश्याम महतो, संगीत एवं नाट्य विभाग की प्रो० लावण्या कीर्ति सिंह काव्या, विभागाध्यक्षा प्रो० पुष्पम नारायण, उर्दू विभागाध्यक्ष डॉ०गुलाम सरवर समेत बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।