#MNN@24X7 दरभंगा विश्वविद्यालय जन्तु विज्ञान विभाग में वरिष्ठ नागरिक की देखभाल (Geriatric Care) विषय पर आयोजित तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यशाला के समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि बोलते हुए प्रसिद्द ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. ए. के. गुप्ता ने कहा- बुढ़ापा जीवन की ऐसी सच्चाई है जिसकी अपनी विशेषताएं और सीमायें होती हैं. मेडिकल सर्वे में स्पष्ट दिखता है कि बुढ़ापे की अक्सर समस्याओं का बीजारोपण युवावस्था या मध्य आयु अवस्था में ही होने लगता है.
असंतुलित खान पान एवं अनियंत्रित जीवन शैली से उच्च रक्तचाप, डायबिटीज, घुटनों का दर्द, रक्त धमनियों में चर्बी का जमाव, अनिद्रा तथा अवसाद जैसी बीमारियाँ होने की सम्भावना बढ़ती जाती है. विश्व स्वास्थ्य संगठन का मंतव्य है कि हर समस्या के लिए दवा लेना समग्र चिकित्सीय दृष्टिकोण (holistic medical approach) के विरुद्ध है. स्वास्थ्य, बीमारी की तरह कोई अवस्था नहीं, बल्कि जीवन संस्कार है.
वृद्ध जनों की चर्चा करते हुए डॉ. गुप्ता ने अपने विस्तृत अनुभवों का उल्लेख करते हुए बताया कि इस आयु वर्ग के लोग शीशे की तरह नाज़ुक होते हैं. मगर स्वस्थ एवं आत्मनिर्भर बुढ़ापे के लिए उन्हें भी अपनी जीवनचर्या को प्रकृति से निकट करना चाहिए. मानसिक और आध्यात्मिक स्वास्थ्य, जीवन में अपेक्षाओं को नियंत्रित करने में सहायक होता है और तभी आनंद की बेहतर अनुभूति की जासकती है.
इसके पूर्व प्रथम तकनीकी सत्र के दौरान प्रजापति ब्रह्मकुमारी संस्थान के श्री सुधाकर ने योग एवं ध्यान का प्रभावकारी प्रायोगिक प्रदर्शन किया. दुसरे तकनीकी सत्र के संसाधन पुरुष प्रोफ.अनीस अहमद, मनोविज्ञान विभाग ने वृद्धजनों के मानसिक संतुलन हेतु कौन्सेल्लिंग के महत्व पर प्रकाश डाला.
समापन सत्र में अतिथियों का स्वागत विभागाध्यक्ष प्रोफ. अजय नाथ झा द्वारा किया गया. प्रोफ एम् नेहाल ने बीज भाषण प्रस्तुत करते हुए कहा- झुर्रियां अतीत की कहानियां हैं, झुकी हुई कमर अकड़ का अंत है तथा विस्मृति बुरी यादों का पटाक्षेप है.
विभाग की सहायक प्रोफ. पारुल बनर्जी ने समापन टिपण्णी प्रस्तुत किया. उल्लेखनीय है कि उक्त कार्यशाला जंतु विज्ञान विभाग तथा Calcutta Metropolitan Institute of Gerontology के संयुक्त तत्वाधान में सामाजिक न्याय एवं आधिकारिकता मंत्रालय, भारत सरकार की वित्तीय सहायता के अधीन आयोजित किया गया जिसके दौरान कुल २५ चयनित सदस्यों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया.