‘संस्कृतिक पुनरुत्थान में युवाओं की भूमिका’ विषयक संगोष्ठी में डा कन्हैया, डा चौरसिया, डा अलख, डा अवधेश, डा सुनीता व डा विकास सिंह आदि ने रखे विचार।

विलक्षण व्यक्तित्व के धनी विवेकानंद दार्शनिक, संन्यासी एवं सामाजिक प्रवर्तक के रूप में हमारे प्रेरक- डा कन्हैया जी।

स्वामी विवेकानंद भारतीय नवजागरण व संस्कृति के अग्रदूत तथा आध्यात्मिक चेतना व युवाओं के प्रेरणा स्रोत- डा चौरसिया।

नर की सेवा को नारायण की सेवा मानने वाले स्वामी जी की जलाई ज्योति अनवरत युवाओं को मार्ग दिखाती रहेगी- डा अलख निरंजन।

#MNN@24X7 दरभंगा। स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर मारवाड़ी कॉलेज की एनएसएस इकाई के तत्वावधान में”सांस्कृतिक पुनरुत्थान में युवाओं की भूमिका” विषयक संगोष्ठी एवं प्रतियोगिताओं का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत अतिथियों, शिक्षकों एवं छात्र- छात्राओं द्वारा स्वामी विवेकानंद के चित्र पर माला एवं पुष्प अर्पण के बाद दीप प्रज्वलन से हुआ।

अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डा कन्हैया जी झा की अध्यक्षता में आयोजित संगोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में विश्वविद्यालय के संस्कृत- प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया,मुख्य वक्ता के रूप में कॉलेज के पूर्व समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डा अलख निरंजन सिंह,विषय प्रवेशक के रूप में संस्कृत विभागाध्यक्ष डा विकास सिंह,स्वागत कर्ता के रूप में बर्सर डा अवधेश प्रसाद यादव, संचालिका के रूप में एनएसएस पदाधिकारी डा सुनीता कुमारी, धन्यवाद कर्ता के रूप में राजनीति विज्ञान के शिक्षक डा रवि कुमार राम आदि के साथ ही अनेक छात्र- छात्राओं ने भी अपने विचार व्यक्त किए।

कार्यक्रम में डा गजेंद्र भारद्वाज, डा सुभाष कुमार सुमन, डा सोनू राम शंकर, डा फारुक अहमद, डा अंकित सिंह, डा श्यामानंद चौधरी, डा अनीता राय, डा पूजा यादव, डा कृष्णा सिंह, डा रतन झा, डा अरविंद यादव, डा परमेन्द्र मिश्रा, डा हेमंत झा तथा डा रामनेक यादव सहित अनेक कर्मचारी एवं छात्र- छात्राएं उपस्थित थे।

अपने संबोधन में डा आर एन चौरसिया ने कहा कि स्वामी विवेकानंद उन लोगों में हैं, जिन्होंने अपने बल पर विश्व को बदलने का काम किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति एवं सनातन धर्म को तर्कपूर्ण ढंग से विश्व पटल पर स्थापित किया। वे अपने योग्य गुरु रामकृष्ण परमहंस के योग्य शिष्य थे। स्वामी जी तत्कालीन अभावग्रस्त भारतीयों में फैले ब्रह्म एवं निराशा को बहुत हद तक दूर किया था।

डा चौरसिया ने कहा कि स्वामी विवेकानंद भारतीय नवजागरण व संस्कृति के अग्रदूत तथा आध्यात्मिक चेतना व युवाओं के प्रेरणास्रोत थे। राष्ट्रनिर्माण एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान में स्वामी विवेकानंद का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे सामाजिक परिवर्तन के अग्रदूत के रूप में समस्त देशवासियों में नई शक्ति का संचरण करते रहेंगे।

डा अलख निरंजन सिंह ने कहा कि नर की सेवा को नारायण की सेवा मानने वाले स्वामी जी की जलाई ज्योति अनवरत युवाओं को मार्गदर्शन करती रहेगी। उन्होंने हमेशा गरीबों, दलितों एवं भूखों को गले लगाया था। वे जीवन भर संस्कृति एवं धर्म- अध्यात्म के उत्थान हेतु जीवन भर प्रयासरत रहे। विवेकानंद युवाओं को स्वस्थ एवं बलशाली बनकर राष्ट्र निर्माण तथा सांस्कृतिक उत्थान में काम करने की सलाह दी थी।

डा सिंह ने कहा कि स्वामी जी युवाओं को चरित्र निर्माण एवं व्यक्तित्व विकास करते हुए आत्मनिर्भर युवा बनने पर बल दिया था। स्वामी जी सुख व दुःख को सच्चा गुरु मानते थे जो जीवन में बहुत कुछ सिखाते हैं। उन्होंने सभी धर्मों में समभाव को देखकर वसुधैव कुटुंबकम की भावना व्यक्त किया था।

विषय प्रवेश कराते हुए डा विकास सिंह ने कहा कि संस्कृति एक व्यापक शब्द है जो हमारी धरोहर है। मानवीय जीवन के सभी मूल्य एवं विचार संस्कृति हैं। स्वामी जी समदर्शी सोच के व्यक्ति थे, जिन्होंने भारतीय संस्कृति का युवाओं को बोद्ध कराया तथा हिन्दू धर्म की अच्छाइयों को विश्व में बताने का काम किया। स्वामी जी ने शिक्षा दी कि समाज में रहकर ही दुनिया बदलना संभव है। यदि युवा सकारात्मक भाव से सामाजिक परिवर्तन एवं सांस्कृतिक पुनरुत्थान करें तो समृद्ध राष्ट्र का निर्माण संभव है।

अध्यक्षीय संबोधन में डा कन्हैया जी झा ने कहा कि विलक्षण व्यक्तित्व के धनी विवेकानंद दार्शनिक, संन्यासी एवं सामाजिक प्रवर्तक के रूप में हमारे प्रेरक हैं। अल्पकाल में ही स्वामी जी ने न केवल भारत को, बल्कि पूरे विश्व को बहुत कुछ दिया। विवेकानंद के समय भारत गुलाम एवं गरीब था, परंतु भारतीय समाज बदलाव की ओर अग्रसर था। जहां सामाजिक, आर्थिक एवं धार्मिक आदि हर स्तर पर सुधार हो रहे थे।

डा कन्हैया ने कहां की उस समय लोग अपनी अस्मिता एवं गौरव की भावना भूल चुके थे और हीन भावना से ग्रस्त थे। विवेकानंद ने लोगों में राष्ट्रवादी सोच विकसित करने का प्रयास किया। उन्होंने भारतीय धर्म व संस्कृति को स्थापित कर प्रतिष्ठित किया। उनका धर्म सर्वग्राही था, जिनके संदेश युवा केन्द्रित थे, जिनपर चलकर संस्कृतिक रूप से मजबूत भारत का निर्माण किया जा सकता है।

इस अवसर पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में अनीश कुमार प्रथम अनुकृति द्वितीय तथा आदित्य कुमार व समरेश कुमार ने तृतीय स्थान प्राप्त किया जबकि निबंध प्रतियोगिता में अनुकृति प्रथम समरेश कुमार द्वितीय तथा शिल्पी कुमारी ने तृतीय स्थान प्राप्त किया वही स्लोगन लेखन में प्रीति कुमारी वह अनुकृति में प्रथम तथा पूनम कुमारी ने द्वितीय स्थान प्राप्त किया। योगिता में सफल सभी प्रतिभागियों को अतिथियों के हाथों प्रमाण पत्र था मेडल प्रदान कर हौसला अफजाई की गई।

एनएसएस पदाधिकारी डा सुनीता कुमारी के संचालन में आयोजित संगोष्ठी में अतिथियों का स्वागत करते हुए बर्सर डा अवधेश प्रसाद यादव ने कहा कि विवेकानंद हमारे आइकॉन एवं युवाओं के प्रेरक हैं। आज हमारी सांस्कृतिक विरासत नष्ट हो रही है, जिससे बचाने की महती जिम्मेदारी युवाओं पर ही है। उन्होंने कार्यक्रम के आयोजन की सराहना करते हुए कहा कि अध्यात्म संस्कृति के बदौलत ही भारत विश्वगुरु था और पुनः बनेगा। धन्यवाद ज्ञापन राजनीति विज्ञान के शिक्षक डा रवि कुमार राम ने किया।