#MNN@24X7 दरभंगा/मधुबनी। हाड़ कंपा देने वाले इस ठंड में जहां सामन्य लोग अपने-अपने घरों में बैठ कर अलाव ताप रहे हैं या फिर रजाई में घुसे हुए हैं। वहीं इस सबके बीच एक तबका ऐसा भी है जो रोजी-रोजगार के अपने यात्रा पर सड़कों पर घूम रहा है। इनमें रातों को भी, कुछ तो आसमान के नीचे एक चादर ओढ़कर सवारियों का इंतजार करते-करते सो जाते हैं।तो कुछ बस छूट जाने की वजह ठंड से बचने के लिए रिक्शा/टेम्पो से चिपककर हाथ-पैर मोड़कर बैठे रहते हैं।
(पैटघाट चौक)

रोजी के लिए खुले आसमान के नीचे रहने को मजबूर

बिहार में इन दिनों कड़ाके की ठंड पड़ रही है ठंड का आलम यह है कि इससे राहत मिलने के आसार अभी नजर नहीं आ रहे। मौसम विभाग ने भी राज्य के 19 जिलों में कोल्ड डे का अलर्ट जारी कर दिया है। इस कड़ाके की ठंड से जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। इस ठंड का सबसे अधिक असर अगर किसी पर देखने में आया है। तो वह है दिहाड़ी मजदूर। इन मजदूरों में रिक्शा चालक, टैम्पो चालक सहित सभी दैनिक मजदूर आ जाते हैं।

इस विकराल ठंड के समय में, इस विपत्ति के काल में हमारे जनप्रतिनिधियों को, समाज सेवकों को इन लोगों के लिए आगे आना चाहिए। क्योंकि यही व्यक्ति लोकतंत्र में एक मतदाता भी है। इनका परिवार इनकी मजदूरी पर ही आश्रित है। साथ ही सरकार को भी इस तरफ ध्यान देने की आवश्यकता है। जहां एक तरफ सरकार इस ठंड में सभी लोगों को पूरी व्यवस्था देने की बात कर रही है। वही ये दैनिक मजदूर, किस प्रकार मजदूरी के साथ-साथ, अपने परिवार की रक्षा करेंगे। यह भी इनके लिए सोचनीय विषय है। इनको और इनके परिवार को देखने वाला कोई नहीं है। ये मजदूर अपनी दैनिक मजदूरी से ही अपने परिवारों का जीवन यापन करते हैं। अगर ठंड में इन्हें रोजगार ना मिले तो इनके परिवार का हाल क्या हो सकता है इसका स्वतः अंदाजा लगाया जा सकता है।

पैटघाट चौक पर बैठकर अलाव ताप रहे एक टैम्पो चालक अशोक यादव ने बताया कि इस ठंड में सवारी मिलती नहीं। घर से टैम्पो निकालते ही तेल जलना शुरू हो जाता है। साथ ही दिनभर ठंड से जान बचाने के लिए गर्म कपड़े के अभाव में कहीं बाहर निकलने में डर भी लगता है। परिवार चलाने के लिए खुद को बचाना भी तो जरूरी है। इस ठंड में सरकार को चाहिए जो हम जैसे मजदूरों को देखें। उनकी बातों का समर्थन उनके साथ खड़े उनके साथी बौक यादव, गरीब यादव, सरोज यादव, प्रमोद यादव और हरि यादव ने भी किया।

खुले आसमान के नीचे रिक्शे को ही बनाया बिस्तर।

चौराहे पर ही एक रिक्शा चालक ने खुले आसमान के नीचे ही अपने रिक्शे को बिस्तर बनाया था। रिक्शा चालक एक पतली सी चादर ओढ़कर सो रहा था। शायद सवारियों का इंतजार करते-करते सो गया हो। बस स्टैंड पर दरभंगा से पहुंचकर जितेन्द्र, रामकरन, कोमल ठंड हवा में बेंच पर बैठकर चाय पी रहे थे। उन्हें मधुबनी जिले के समिया ढाला जाना था, लेकिन बस नहीं थी। जिससे मजबूरी में यही रुके रहे।

काम की तलाश में गांव से आए संतोष यादव को इस ठंड में काम नहीं मिला। घर वापस जाने के लिए यहां पहुंचे तो ठंड ने आग के पास बैठने को मजबूर कर दिया। मगर उनके चेहरे पर परिवार की चिंता साफ दिखाई दे रही थी। घर दूर होने की वजह से आने जाने का किराया खर्च हो गया सो अलग। उन्होंने यहीं बेंच को ही अपना ठिकाना बना लिया। रैमा के उमेश दीवार के सहारे हाथ-पैर मोड़कर सिर नीचे करके बैठे हुए थे। पूछने पर उमेश ने बताया कि घर जाना था बस नहीं मिली।

रोजगार के लालच में खुले आसमान के नीचे सो रहे मजदूर।

यातायात तिराहे पर मजदूरी मिलने के लालच में लोग अलग-अलग जगहाें पर बैठकर आग ताप रहे थे। वहीं कुछ लोग खुले आसमान के नीचे कंबल ओढ़कर बैठे रहे। अलाव ताप रहे एक मजदूर ने बताया कि रोजगार के चक्कर में वे लोग यहीं बैठे रहते हैं।