#MNN@24X7 आयुर्वेद आपके साथ की पूरी जानकारी हम आपको दे पा रहे हैं वैद्य प्रोफेसर दिनेश्वर प्रसाद, राजकीय आयुर्वेदिक कॉलेज अस्पताल, पटना, बेगूसराय, दरभंगा, बिहार के पूर्व प्राचार्य एवं पटना, शेखपुरा, के पाल मार्केट स्थित अमृत आयुर्वेद के निदेशक सह: मुख्य चिकित्सक के माध्यम से। साथ ही आपको बता भी दूं कि अमृत आयुर्वेद (IGIMS) के बगल में 65 नंबर पिलर के सामने पाल मार्केट में है। आप सभी का पूर्व की भांति आप सभी का स्वागत करते हुए आज आयुर्वेद आपके साथ, कार्यक्रम के तहत हम अग्नि मांध यानि कि भुख की कमी (Loss of Appetite) के विषय में जानेंगे।

अग्निमादं आयुर्वेद का एक अजीबो गरीब रोग है।

यह प्रत्येक व्यक्ति में विशेष रूप से अलग अलग अनुभव होता हैं। बहुत सारे लोग, डाक्टर या पद्धति के लोग भी इस रोग को रोग मानते ही नहीं है। वस्तुतह समान्य स्थिति में भी सभी लोगों की भुख अलग अलग होती हैं। किसी के लिए एक समय का खाना ही काफी होता है, तो किसी किसी को तीन चार बार खाने के बाद भी भुख लगी रहती हैं।,इसी तरह किसी किसी को एक समय में दो तीन चपाती एवं थोडा दाल, दही, सब्जी ही काफी होता हैं, तो किसी किसी को 10,20 चपाती भी कम पडती है।

आयुर्वेद मे दोष धातु के अतरिक्त अग्नि, कोष्ठ, मल,की प्रधानता मानी गई है और तीनो एक दूसरे के पूरक होते हैं। जठरानी के द्वारा ही खाए हुए आहार का पाचन होता है और पाचन के वाद मुख्य रूप से इसके दो असं (भाग) बनते है एक को हम सार भाग यानी धातु, ऊर्जा, ताकत, पोषक तत्व कहते हैं, तो दूसरे को मल यानी कीट भाग।

मल का मतलब केवल पैखाना नही होता है बल्कि मल, मूत्र, थूक, खखार, पसीना, मासिक स्राव, आंख, कान , नाक एवं मुंह से निकलने वाला विकृत तत्व होता है। आयुर्वेद के तहत जठराग्नि के साथ-साथ सात प्रकार की धातवागनि एवं पांच प्रकार का पंचमहाभुतागनि भी बताया गया है। जो शरीर के पाचन के द्वारा पोषण कर्म में सहयोग का काम करती है।

सामान्य रूप से खाना खाने में एकाएक या धीरे धीरे जब ज्यादा कमी महशुष होने लगती है। तो सामान्य भाषा में इसे अग्निमादं कहा जाता है। कभी कभी रोगी या व्यक्ति को स्वय महसूस नहीं होता है कि उसके भुख में कमी हो रही है,पर घर में रह कर नियमित रूप से खाना खिलाने या परोशने वाले लोगों को महसूस होता है की अमुक आदमी पहले पांच सात रोटी खाते थे पर इनका खुराक अब बहुत कम हो गई है तब जाकर उस व्यक्ति को भी यह महसूस होने लगता है, हां भुख में कमी हो गयी है।

कभी कभी यह स्वंतत्र रोग के रूप में व्यक्त होता है। तो कभी कभी दूसरे रोगों के लक्षण के रूप में। इसका शारीरिक एवं मानसिक कारणों यानी दोनो से संबंध हो सकता है।

आयुर्वेद में अग्नि यानी भुख को चार प्रकार का वर्णन किया गया है। यथा
(१) अग्निमादं यानी भूख में ज्यादा ही कमी
(२) मंदाग्नि भूख में थोड़ी कमी
(३)मध्यम अग्नि यानी सामान्य या वास्तविक भूख एवं पाचन
(४)तिक्षाणाआगनि यानी आवश्यकता से ज्यादा भूख,
या खाने की इच्छा।

कम भूख (अग्निमाधं) एवं तीक्ष्ण अग्नि यानी आवश्यकता से ज्यादा भूख या बार बार खाने के बाद भी खाने से संतुष्टि का न होना भी रोग माना गया है। और इन दोनो स्थितियों में या विकृतियो के लिए भी आयुर्वेद में अलग अलग तरह की चिकित्सा बताई गई है।

उसी तरह कोष्ठ को भी मुख्य रूप से तीन प्रकार का बताया गया है। यथा

पहला मृदु कोष्ठ, यानी साधारण खाना या सामान्य विरेचक आहार यथा दुध, घृत, उनका, अंजीर, पपीता, हलवा, मिठाई से भी पतला या बार बार पैखाना होने लगे तो उसे मृदु कोष्ठ कहते है।

दूसरे को मध्यम कोष्ठ, जिसमे सामान्य खान पान से पूरे 24 घंटे में एक या दो बार संतोष जनक पैखाना का होना।

एवं तिसरे में सामान्य विरेचन पैखाना कराने वाली दवाइयों से भी पैखाना का न होना या दो तीन दिन के अंतराल पर कठिन एवं कष्ट दायक स्थिति से पैखाना का होना।

इस स्थिति में मृदु एवं कुर्रर कोष्ठ वाले को भी चिकित्सा की जरूरी पडती है। अतऎव चिकित्सक से परामर्श लेकर दवाइयों का उपयोग करना चाहिए अन्यथा लाभ के जगह हानि हो सकती है

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(लेखक)