जालौन।डकैतों पर बनी कई ऐसी फिल्में हैं।जिसमें आप सभी ने देखा होगा कि डकैत मंदिरों में जाकर देवी मां की आराधना करते हैं।चंबल का बीहड़ डकैतों का गढ़ माना जाता था।जिस देश में गंगा बहती है,मेरा गांव मेरा देश,डकैत,मुझे जीने दो आदि फिल्में चंबल के बीहड़ों में शूट हुई हैं।चंबल के इन्हीं बीहड़ो में मां जालौन देवी का धाम है।जिन्हें जयंती देवी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

इस मंदिर के कई रहस्य और महिमाएं हैं।जालौन के कुठौंद थाना क्षेत्र के बीहड़ में यमुना नदी के किनारे ग्राम बरीकेपुरवा में बने इस मंदिर में कभी डाकू भी आस्था से अपना सिर झुकाते थे।जिस बीहड़ में कभी डांकुओं के गोलियों की तड़तड़ाहट गूंजती थीं।आज यहां मंदिर के घंटों की आवाज सुनाई देती है।

आइए आपको इसके बारे में बताते हैं।

बताया जाता हैं कि महाभारत काल में पांडव जब अपने अज्ञातवास में थे।तब पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण कराया था।पांडवों ने माता कुंती के कहने पर वेदव्यास को कालपी से बुलाकर रातों-रात मंदिर का निर्माण करवाया था।आज भी ब्रह्म मुहूर्त में ॠषि-मुनि, यमुना और चंबल नदी के संगम में स्नान कर माता की पूजा करते हैं।इस मंदिर के पुजारी का कहना है कि जब वह सुबह माता के पट को खोलते हैं, तो माता के सामने जल पुष्प अक्षत पहले से चढ़ाए हुए मिलते हैं।

चंदेल राजाओं के समय मंदिर की थी ख्याति।

चंदेल राजाओं के समय जालौन देवी के मंदिर की बहुत ख्याति थी।लोग, दूर-दूर से यहां आते थे।एक बार एक भक्त अपने मरे हुए बच्चे को लेकर जालौन देवी के धाम पहुंचा।कहते हैं कि मां की पूजा और दर्शन मात्र से बच्चा जीवित हो गया।इसके बाद से जालौन देवी को संतान देने वाली माता भी कहा जाने लगा। तब से लोग संतान कामना के साथ इस मंदिर में पहुंचते हैं।

बीहड़ के डकैत भी झुकाते थे सर।

एक समय था जब चंबल के बीहड़ में डाकुओं का राज हुआ करता था।यहां डकैतों का आतंक था।जिसमें डकैत मलखान सिंह, पहलवान सिंह, निर्भय सिंह गुर्जर, फक्कड़ बाबा, फूलन देवी, लवली पाण्डेय,अरविन्द गुर्जर,सीमा परिहार समेत कई डकैत थे, जो समय-समय पर इस मंदिर में गुपचुप तरीके से माता के दर पर माथा टेकते थे और घंटा चढ़ाकर यहां से निकल जाते थे।

पहले डाकुओं के डर के चलते दर्शन के लिए कम आते थे लोग।

पिछले कई दशकों तक जालौन सहित आस-पास के जिले इटावा, औरैया आदि में डाकुओं ने काफी हड़कंप मचा रखा था।जिसके चलते लोगों में डकैतों को लेकर मन में खौफ हो गया था।इसलिए लोग जालौन देवी के दर्शनों के लिए कम ही आते थे।हालांकि पुलिस और एसटीएफ की सक्रियता के चलते अब अधिकांश डकैत मुठभेड़ के दौरान मारे जा चुके हैं।वहीं कुछ ने मारे जाने के डर से आत्म समर्पण कर दिया है। जिसके चलते जालौन जिले के बीहड़ अब डकैतों से मुक्त हो चुका हैं।

यमुना और चंबल नदी के पास बना है मंदिर।

जालौन देवी का मंदिर यमुना और चंबल नदी के पास है।जहां अधिकतर डाकू अपना अड्डा बनाते थे। 2-3 दशकों से डांकुओं का साम्राज्य खत्म होने से अब लोग भय मुक्त होकर दर्शन करने आ रहे हैं।नवरात्र के समय यहां भक्तों की संख्या में अच्छी खासी बढ़ोतरी होती है।मंदिर से जुड़े किस्से और डाकुओं की कहानी लोगों के लिए आस्था और आकर्षण का केंद्र बन गया है।

धाम में लगता है विशाल मेला।

चैत्र नवरात्र और शारदीय नवरात्र में यहां वृहद मेले का आयोजन किया जाता है। 9 दिन दूरदराज के जिलों से लोग आते हैं। इसके अलावा देश विदेश के लोग भी यहां पर मां की पूजा अर्चना के लिए आते हैं।लोग अपने पूरे परिवार के साथ मां से आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं।लगभग 10 किलोमीटर के दायरे में भीषण जाम की हालत हो जाती है।गाड़ियों की लंबी लंबी कतारें,लोगों का हुजूम यहां पर देखने को मिलता है।सब एक बार मां की झलक पाना चाहते हैं और अपनी मनोकामना पूर्ण करना चाहते हैं।नवरात्रि में यहां पर जबरदस्त रौनक रहती है।एक बार अगर आप मां के दर्शन कर ले तो आप दोबारा इस धाम में जरूर आएंगे।