सहरसा में पूर्व मंत्री आलोक रंजन झा ने थामी आंदोलन की बागडोर।

#MNN@24X7 बिहार लोक सेवा आयोग की 68वीं प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा की संरचना में किए गए संशोधन में व्याप्त विसंगतियों के प्रति आम जनता को जागरूक करने के उद्देश्य से मंगलवार को सहरसा से जन जागरण अभियान की शुरुआत की गई। इससे पहले सैकड़ों की संख्या में लोगों ने बिहार सरकार के पूर्व मंत्री आलोक रंजन झा की अध्यक्षता में सहरसा समाहरणालय के समक्ष आयोजित धरना कार्यक्रम में भाग लिया।

मौके पर पूर्व मंत्री आलोक रंजन झा ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल जनक, जानकी, मंडन, भारती, राजा सलहेश और दीनाभद्री की भाषा मैथिली अन्य भाषाओं को मनमाने तरीके से बीपीएससी में महत्वहीन बनाकर बिहार सरकार ने अपनी मंशा साफ कर दी है कि उन्हें मिथिला-मैथिली के विकास से कोई सरोकार नहीं है।

उन्होंने कहा कि प्राथमिक शिक्षा की पढ़ाई मैथिली में शुरू किए जाने से कन्नी काटती रही बिहार की सरकार बिहार लोक सेवा आयोग में इस भाषा को महत्वहीन बनाकर उच्च शिक्षा में भी इस भाषा के अस्तित्व को मिटाने का चक्रव्यूह रच रही है। लेकिन वह अपनी इस मंशा में कारगर नहीं हो सकती, क्योंकि मिथिला के लोग अब जाग चुके हैं। उन्होंने कहा कि बीपीएससी के पाठ्यक्रम में 300 अंकों के वैकल्पिक विषय के रूप में मैथिली को स्थान दिलाने की लड़ाई में वे हमेशा अगली कतार में शामिल रहेंगे।

विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने कहा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल भाषाओं को इस परीक्षा की वैकल्पिक विषयों की सूची से हटाया जाना और मेधा सूची में इन विषयों के प्राप्तांक को नहीं जोड़े जाने का प्रावधान न्याय संगत नहीं है। ऐसा होने से भाषा साहित्य के प्रतिभावान छात्रों को न सिर्फ काफी नुकसान होगा, बल्कि ऐसी भाषाओं के व्यवहार में नहीं होने से धीरे-धीरे वे अपना अस्तित्व खो बैठेंगे। उन्होंने कहा कि बिहार लोक सेवा आयोग के इस निर्णय को लेकर वे न आज से आम मैथिली भाषी लोगों के बीच जा रहे हैं और उचित न्याय मिलने तक सड़क से लेकर सदन तक आंदोलन का बिगुल फूंकने के साथ ही नैसर्गिक न्याय पाने के लिए अदालत का दरवाजा भी खटखटाएंगे।

अपने संबोधन के दौरान उन्होंने घोषणा की कि मिथिला व मैथिली के विकास के लिए अब याचना नहीं, रण होगा। 31 जनवरी को संसद भवन पर घेरा डालो डेरा डालो प्रदर्शन के उपरांत 7 फरवरी से प्रमंडल स्तर जन जागरण का कार्यक्रम अनवरत जारी रहेगा। जिसमें मैथिली सहित अन्य भाषाओं के प्रतिनिधि भी शामिल होंगे।

मौके पर प्रो उदय शंकर मिश्र ने बीपीएससी द्वारा मैथिली सहित अन्य भाषाओं के साथ किए जा रहे कुठाराघात को आत्मघाती बताते हुए मिथिला एवं मैथिली के विकास के नाम पर हो रही ओछी राजनीति के विरुद्ध दलगत भावनाओं से ऊपर उठकर सभी राजनीतिक दलों एवं अन्य संगठनों को एक मंच पर आकर इसके विरुद्ध आवाज बुलंद करने का आह्वान किया। वरिष्ठ साहित्यकार डा योगानंद झा ने कहा कि मिथिला एवं मैथिली के विकास में आ रही बाधाओं के स्थायी निदान के लिए अब अलग मिथिला राज्य का निर्माण जरूरी हो गया है।

सहरसा के पूर्व विधायक किशोर कुमार मुन्ना ने कहा कि बिहार की सरकार वोट की राजनीति के नाम पर एकला चलो की रणनीति में कामयाब नहीं हो पाएगी। उनके इस निर्णय के विरुद्ध ईट का जवाब पत्थर से दिया जाएगा।

जयराम झा ने कहा कि स्वतंत्र साहित्य, व्याकरण और लिपि से संपन्न भारत की प्राचीनतम भाषाओं की अस्मिता के साथ भी खिलवाड़ करने से बिहार की सरकार बाज नहीं आना निंदनीय और चिंताजनक है। त्रिभुवन सिंह ने सवाल उठाया कि जिन भाषाओं को वैकल्पिक विषय के रूप में यूपीएससी और अन्य राज्यों की लोक सेवा आयोग में मान्यता मिली हुई है, उसे बिहार सरकार मनमानी तरीके से कैसे हटा सकती है? कार्यक्रम में सुरेंद्र कुमार यादव, विनीत कुमार, बिंदेश्वरी प्रसाद झा, राजेंद्र कुमार सिंह, रामचंद्र चौधरी, सत्यप्रकाश झा, प्रो चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई एवं डा गणेश कांत झा आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।