#MNN@24X7 दरभंगा, मैथिली के वरिष्ठ साहित्यकार डॉ रामदेव झा की पुण्यतिथि पर विद्यापति सेवा संस्थान ने शनिवार को उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की। महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते कहा कि वे मैथिली साहित्य के ऐसे अनमोल हस्ताक्षर थे, जिन्हें साहित्य अकादमी ने उनकी मूल कृति ‘पसीझैत पाथर’ नाट्य संग्रह के लिए वर्ष 1991 में, राजेंद्र सिंह बेदी की उर्दू में लिखी पुस्तक ‘सगाई’ का मैथिली में अनुवाद के लिए वर्ष 1994 में तथा बाल साहित्य के लिए वर्ष 2015 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा था। 50 से अधिक पुस्तकों के रचयिता डाॅ रामदेव झा राष्ट्रपति पुरस्कार से भी सम्मानित थे। उनपर आज भी संपूर्ण मिथिला को गुमान है।

मैथिली अकादमी के पूर्व अध्यक्ष पं कमलाकांत झा ने कहा कि वे मैथिली के प्रबुद्ध साहित्यकारों में से एक थे। उनकी दिव्य दृष्टि से मैथिली साहित्य का न सिर्फ तेजी से विस्तार हुआ, बल्कि विकास भी हुआ। वरिष्ठ साहित्यकार मणिकांत झा ने कहा कि वे न सिर्फ मैथिली में कथा लेखन की विधा के सर्जक थे, बल्कि उत्कृष्ट कोटि के नाटककार एवं पत्रात्मक शैली में उपन्यास लेखन के पुरोधा थे। डा बुचरू पासवान ने कहा कि मैथिली के कालजयी रचनाकार के रूप में वे अपनी रचनाओं में सदैव जीवंत बने रहेंगे। डाॅ महेन्द्र नारायण राम ने कहा कि मैथिली के वे अकेले ऐसे साहित्यकार थे जिनकी रचनाएं स्थानीय विश्वविद्यालयों से लेकर कैंब्रिज विश्वविद्यालय तक चर्चा का विषय बनती थी।

मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि साहित्य अकादमी और राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित डाॅ रामदेव झा मैथिली साहित्य के चलते फिरते विकिपीडिया थे। उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने वाले अन्य लोगों में पूर्व पीजी मैथिली विभागाध्यक्ष डा रमेश झा, डा गणेश कांत झा, डा उदय कांत मिश्र, प्रो चंद्रशेखर झा बूढ़ा भाई, विनोद कुमार झा, चंद्र मोहन झा पड़वा, प्रो विजयकांत झा, आशीष कुमार, चंदन सिंह आदि शामिल थे।