हम सब भाग्यशाली हैं कि हमारे पास ललित बाबू का आदर्श है, जिनके संदेशों एवं कार्यों से हम तेजी से आगे बढ़ सकते हैं- कुलपति।

ललित बाबू किसी एक समाज, राजनीतिक दल या क्षेत्र मात्र के नेता नहीं, बल्कि जन- जन के सर्वमान्य नेता- कुलसचिव।

#MNN@24X7 दरभंगा। विश्वविद्यालय जीवंत होता है, जिसमें काम करने वाले सभी युवा सदृश्य ही होते हैं, क्योंकि इसमें छात्र- छात्राओं के आने- जाने की निरंतरता बनी रहती है। इस कारण विश्वविद्यालय में सदा ही जागरूकता भी बनी रहती है। यदि हम विवेकवान एवं चिंतनशील बनेंगे, तभी बदलाव आएगा और विकास भी करेंगे, क्योंकि जो अपने में सुधार एवं बदलाव करता रहता है, वही लगातार आगे बढ़ता रहता है। उक्त बातें ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह ने जुबली हॉल में स्व. ललित नारायण मिश्र की जयंती समारोह- 2023 की अध्यक्षता करते हुए कही।

कुलपति ने कहा कि इस तरह के आयोजन लोगों की चेतना जागरण तथा संदेश देने के उद्देश्यों से ही किए जाते हैं। हम सब आज ललित बाबू के कार्यों एवं संदेशों से अवगत हो रहे हैं। वे बाबू छात्र जीवन से ही चिंतनशील एवं क्रियाशील रहे थे। हम सब बड़े सौभाग्यशाली हैं कि हमारे पास ललित बाबू का आदर्श है, जिनके संदेशों एवं कार्यों से हम तेजी से आगे बढ़ सकते हैं। जब चिंतन कार्य रूप में बदलता है तो विकास होता है। हम तमाम बदलावों के साथ ही सतत आगे बढ़ रहे हैं। यही कारण है कि आज मिथिला विश्वविद्यालय बिहार प्रांत में सबसे आगे चल रहा है।

उन्होंने बताया कि स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि जो देश अपने पूर्वजों को भूल जाता है, उसका भूगोल भी मिट जाता है। जैसे ही यथास्थिति में बदलाव लाया जाता है, वैसे ही लोगों में हलचल शुरू हो जाती है, परंतु हमलोग ने हमेशा दूसरे के हाथ खींचने का मॉडल को अपनाया है। कुलपति ने कहा कि पहले इसका नाम मिथिला विश्वविद्यालय था, पर ललित बाबू की शहादत के बाद इसका नाम ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय पड़ा। हमें सोचना चाहिए कि इसके नाम में ललित बाबू का नाम क्यों जोड़ा गया? मैं यहां से काफी दूर रहते हुए भी ललित बाबू जैसे बिहार के कुछ महापुरुषों का नाम जानता था।

सीनेटर डा बैद्यनाथ चौधरी ‘बैजू’ ने कहा कि विश्वशांति के प्रणेता, मिथिला के लाल तथा कोशी के सुपुत्र ललित बाबू ने बिहार के लिए अपनी शहादत दी थी। वे पक्ष एवं विपक्ष सबका सम्मान करते थे। ललित बाबू ने कहा था कि मैं रहूं या नहीं रहूं, पर बिहार और मिथिला आगे बढ़कर रहेगा। डॉ बैजू ने कुलपति प्रोफेसर सुरेन्द्र प्रताप सिंह को मिथिला विश्वविद्यालय को नीट एंड क्लीन विश्वविद्यालय बनाने के लिए धन्यवाद देते हुए ललित बाबू के शहादत स्थल पर समस्तीपुर में उनकी मूर्ति की स्थापना तथा सी एम कॉलेज के छात्र रहे ललित नारायण मिश्र तथा कर्पूरी ठाकुर को भारतरत्न दिए जाने की बात कही। उन्होंने कर्पूरी ठाकुर तथा ललित बाबू की मूर्ति सी एम कॉलेज परिसर में स्थापित किए जाने तथा मिथिला विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा कुलपति प्रोफेसर एस पी सिंह के कार्यकाल में दिए जाने की इच्छा जताई।

सी एम साइंस कॉलेज के प्रधानाचार्य प्रोफेसर दिलीप कुमार चौधरी ने कहा कि ललित बाबू मिथिला के बड़े छितिज के अमित नेता थे, जिनका विश्वविद्यालय के प्रति योगदान विस्मृत नहीं किया जा सकता। कोशी पुत्र कहे जाने वाले ललित बाबू का सपना था कि रेलवे का जोनल कार्यालय दरभंगा में स्थापित हो जो पूरा नहीं हो सका है। ललित बाबू के निकट पारिवारिक सदस्य अरुण जी ने बताया कि पांडव के सदृश वे पांच भाई थे जो एक- दूसरे की सदा मदद करते थे।

वाणिज्य संकायाध्यक्ष प्रोफ़ेसर बीबीएल दास ने ललित बाबू के प्रति श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि मिथिला विश्वविद्यालय की स्थापना में स्वप्नदृष्टा एवं प्रभावशाली नेता के रूप में उनका अविस्मरणीय योगदान रहा है। आज कुलपति के नेतृत्व में यह विश्वविद्यालय लगातार आगे बढ़ रहा है, जिससे वे पुण्यात्माएं भी प्रसन्न हो रही होंगी। ललित बाबू मिथिला एवं कोशी क्षेत्र में रेलवे के विस्तार तथा मिथिला पेंटिंग को व्यावसायिक रूप प्रदान करने में सर्वाधिक योगदान किया था।

अतिथियों का स्वागत करते हुए कुलसचिव प्रोफेसर मुश्ताक अहमद ने ललित बाबू के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिंदा कौम हमेशा अपने पूर्वजों को याद करता है। ललित बाबू की छवि किसी दलगत नेता के रूप में नहीं, बल्कि वे व्यक्तिगत आचरण के कारण पूरे बिहार तथा विशेष रूप से मिथिला के सर्वमान्य नेता थे, जिनके बारे में छात्र- छात्राओं को जरूर पढ़ना और जानना चाहिए।

कुलसचिव ने कहा कि ललित बाबू किसी एक समाज, राजनीतिक दल या क्षेत्र मात्र के नेता नहीं, बल्कि जन- जन के सर्वमान्य नेता थे। समारोह में प्रो अशोक कुमार मेहता ने ललित बाबू पर आधारित मैथिली कविता का गायन किया।
सबसे पहले कुलपति के नेतृत्व में विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्षों, विभागाध्यक्षों, पदाधिकारियों, शिक्षकों, कर्मचारियों तथा छात्र- छात्राओं ने मुख्यालय स्थित ललित बाबू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया। तत्पश्चात जुबली हॉल में आयोजित मुख्य समारोह का प्रारंभ दीप प्रज्वलन के साथ ही बिहार गीत तथा विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुआ, जबकि समापन राष्ट्रगान के सामूहिक गायन से हुआ।

इस अवसर पर वित्तीय परामर्शी कैलाश राम, वित्त पदाधिकारी राजन कुमार सिन्हा, मानविकी संकायाध्यक्ष प्रो ए के बच्चन, सामाजिक विज्ञान के संकायाध्यक्ष प्रो पी सी मिश्रा, ललित कला के संकायाध्यक्ष प्रो लावण्य कीर्ति सिंह ‘काव्या’, सीनेटर मीना कुमारी, डीएसडब्ल्यू विजय कुमार यादव, कुलानुशासक प्रो अजयनाथ झा, प्रो अजीत कुमार सिंह, प्रो मुनेश्वर यादव, प्रो अरुण कुमार सिंह, प्रो दमन कुमार झा, प्रो रमेश झा, प्रो शाहिद हसन, प्रो मंजू राय, प्रो सुरेन्द्र कुमार, प्रो राजेन्द्र साह, डा घनश्याम महतो, डा आर एन चौरसिया, डा विनोद बैठा, डा नैयर आजम, डा यू एन तिवारी, प्रो पुनीता झा, डा दिव्या रानी हंसदा, डा मंजू झा, डा सोनी सिंह, डा कामेश्वर पासवान, डा आनंद मोहन मिश्र, डा मनोज कुमार, डा ज्योति प्रभा, डा दिवाकर झा, डा मो ज्या हैदर, डा सुरेश पासवान, डा गजेन्द्र प्रसाद, डा एस एन राय, डॉ नवीन कुमार सिंह, डा महेश प्रसाद सिन्हा तथा डा गीतेन्द्र ठाकुर सहित अनेक शिक्षक, शिक्षकेतर कर्मी तथा छात्र- छात्राएं उपस्थित थे।

प्रोफेसर अशोक कुमार मेहता के कुशल संचालन में आयोजित समारोह में धन्यवाद ज्ञापन डा आनंद प्रकाश गुप्ता ने किया।