कहल जाइत अछि जे जौँ अहाँ अपन इतिहास के बिसरब,तखन इतिहासो अहाँ के बिसरि जायत। किछु एहने भाग्य रहल ऐछ मैथिल के।
जनक नंदनी जानकी क कथा वैभव सुईन,कखनो क’ई होइत अछि जे ई वैह मिथिला छी वा दोसर। किया त चारू कात पसरल रोजगार के अभाव आ दरिद्रता,ई कखनो मानबाक लेल तैयार नै अछि,जे ई वैह वैभव शाली मिथिला थीक। इ त ओहिना बुझाइत अछि,जेना मैथिल चांद क चंदा मामा बुईझ प्रसन्न भ’जाइत छथि।
मैथिल भेनाइ, मैथिली बजनाइ,गीत नाद सुननाई वा कोजगरा,मधुश्रावणी एहेन पाबनि तिहार में बस जेनाइ टा एक समय में सेहन्ता क’ गप्प छल, मुदा आब त लोको पूरब मुश्किले बुझाइत ऐछ।एहेन उपेक्षा जे कोनो सरकारो एकरा कार्यालय वा आन ठाम एकर प्रयोगक लेल लोक सब में उत्साह वर्धन क काज नहि क सकलाह । अनेर गै जकाँ रोन बोन’क घास-पात चरब,अपना सबहक रोजगार’क व्यथा बैन गेल। एहेन नहि जे मिथिला कहियो व्यापारिक रूप सं संपन्न नहि रहल अछि मुदा ई कुंठा आ द्वेष के शिकार बनि गेल।एकर सिनेमा, गीत संगीत, लोक कला आ संस्कृति कए उपेक्षित कैल जाय लागल,परिणाम ई भेल जे एतुक्का युवा “हम की छलौं” के नई बूझ चाहैत आ नहिए मिथिला के नाम पर हुनका म कुनो उत्साहे बचल ऐछ।
अप्पन पाबनि तिहार सब जेना की जुडि शीतल, चौरचन, सपता डोरा,अनंत पूजा,राजा सलहेसक पूजा वा आन प्रथा क नई बुझब मुदा दोसर ठाम’क पूजा पाठ उत्साह स करब आ सोशलमीडिया पर सांझि करब। ई ओहने लगैत अछि जे माछ-मखान पहिचान छी मुदा अप्पन पोखरि भरा दोसर ठाम सं मंगेनाई। ई अप्पन वैभव क कमतर बुझनाई नहि भेल तखन की? अहाँ पूरा जिनगी किछु करू कतबो कमाऊ मुदा मिथिला क प्रति किछ त जबाब देही अपनो सबहक छी।हिनका अपन माता कहैत छियन्हि आ बुझैत छियन्हि अपना सब।
भगवान राम लग माता वैदेही क एकसर सब भोग भोगबाक लेल छोड़बाक श्राप एखनो धरि मैथिल केँ उबर’ नहि द रहल अछि। वैदेही एखनो अपन उचित अधिकार’क लेल पूजा पाठ वा आन आन रूप में सर्वाधिक मिथिले में आबि रहल छथि। ई बुझनाई अपना सब’के काज अछि जे हुनका-हुनकर अधिकार द मिथिला क श्राप मुक्त करी आ विकास’क पथ पर कान्ह सं कान्ह मिला के आगू बढ़ी वा फेर निरंतर अहिना…..।