#MNN@24X7 पटना, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने बुधवार को बिहार की राजधानी पटना में बिहार के चतुर्थ कृषि रोड मैप का लोकार्पण किया। इस मौके पर कार्यक्रम को संबोधित करते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि आज खुशी की बात है। बिहार में बुधवार से चतुर्थ कृषि रोड मैप की शुरुआत हो रही है। नीतीश कुमार ने कहा कि 2008 में पहले कृषि रोड मैप की शुरुआत हुई थी। चार साल में कृषि क्षेत्र में काफी विकास हुआ है। फसल का उत्पादन बढ़ा है। 2012 से लेकर 17 तक के लिए दूसरे कृषि रोड मैप की स्थापना की गई। 2017 से 22 तक के लिए तीसरे कृषि रोड मैप को लाया गया। तीसरे कृषि रोड मैप को एक साल के लिए बढ़ा भी दिया गया। जब तीन कृषि रोड मैप की समीक्षा की गई तो लगा कि कृषि में विकास तो हुआ है, लेकिन कुछ और कमी रह गई है। यही कारण है कि चौथा कृषि रोड मैप बनाया गया। किसानों की समस्याओं के मुद्दे पर जब बिहार के गांव-गांव में घूम कर जन सुराज पदयात्रा कर रहे प्रशांत किशोर से जमीनी सच्चाई पूछी गई तो उन्होंने कहा कि बोलचाल की भाषा में लोग जो बता रहे हैं, उसके आधार पर खेती करने वाले लोगों की हालत बिहार में यह है कि आज से 10 साल पहले खेती करने वाले लोग अपना पेट काटकर सत्तू खाकर 5 वर्ष अगर खेती करते थे तो ऐसी मनशा रखते थे कि चार-पांच कट्ठा जमीन वह खरीदेंगे। आज स्थिति यह है कि खेती करने वाले लोगों के घर में अगर कोई बिजनेस, व्यापार या नौकरी करने वाला नहीं है और घर में बेटी की शादी होने वाली हो या कोई बीमार पड़ जाए तो हर 5 वर्ष में जमीन बेचना पड़ता है।

प्रशांत किशोर -बिहार देश का मात्र एक ऐसा राज्य जहां पिछले 10 वर्षों में सिंचित भूमि की मात्रा कम हुई है।

प्रशांत किशोर ने कहा कि कोई ऐसा प्रखंड नहीं है जहां जमीन जल जमाव के कारण बर्बाद नहीं है, जिसे लोकल भाषा में चवर कहते हैं। हजारों एकड़ जमीन में या तो एक फसल हो रही है या एक भी नहीं हो रही है। जितनी बड़ी समस्या बाढ़ की है करीब-करीब उतनी ही बड़ी समस्या जल जमाव की भी है। किसानों से जुड़े एक और समस्या के बारे में बताते हुए प्रशांत किशोर ने सिंचाई के संबंध में कहा कि बिहार देश का मात्र एक ऐसा राज्य है जहां पिछले 10 वर्षों में सिंचित भूमि की मात्रा कम हुई है, वो भी 11%। पहले से जो नहर बने हुए थे, नलकूप चल रहे थे वह रख-रखाव के अभाव में बंद हो गए या वहां से सिंचाई बंद हो गई।

प्रशांत किशोर ने किसानों को उनके फसल का दाम नहीं मिलने के पीछे के चार कारण को स्पष्ट किया।

प्रशांत किशोर ने कहा कि जमीन और जल प्रबंधन के बावजूद जो किसान यहां फसल पैदा कर रहे हैं उसका उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। एक आर्थिक सर्वेक्षण के हिसाब से बिहार में जो फसल किसान पैदा करता है उसका अगर उचित मूल्य मिल जाए तो हर वर्ष बिहार के किसानों को 20 हज़ार करोड़ रूपया अलग से मिलने लगेगा। किसानों के इस नुकसान का कारण बताते हुऐ उन्होंने कहा कि यहां टैक्स की व्यवस्था पूरी तरीके से खत्म है, कोऑपरेटिव नहीं है, नई व्यवस्था FPO बिहार में ट्राई नहीं किया गया और प्राइवेट सेक्टर का जो कृषि आधारित उद्योग है वह बिहार में है नहीं। यही चार कारण है कि यहां पर किसानों को उनके फसल का उचित दाम नहीं मिल रहा।