#MNN@24X7 दरभंगा, मैथिली एवं हिन्दी के साथ-साथ कई अन्य भाषा-साहित्य पर अच्छी पकड़ रखने वाले यात्री-नागार्जुन वास्तव में जनता की व्यापक राजनीतिक आकांक्षा से जुड़े विलक्षण कवि थे। जिनका विभिन्न भाषाओं पर न सिर्फ गजब का एकाधिकार था बल्कि, उनकी रचनाओं में देसी बोली के ठेठ शब्दों से लेकर संस्कृतनिष्ठ शास्त्रीय पदावली तक उनकी भाषा के अनेक स्तर थे। यही कारण रहा कि मैथिली के अलावा हिन्दी, बंगला और संस्कृत में आम जन की आकांक्षाओं के पात्रों को केन्द्र में रखकर उन्होंने बहुत कुछ अलग से लिखकर साहित्य की अभूतपूर्व श्रीवृद्धि की।

उक्त बातें विद्यापति सेवा संस्थान के अध्यक्ष सह कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो शशिनाथ झा ने रविवार को जनकवि बाबा नागार्जुन की पुण्यतिथि पर विद्यापति सेवा संस्थान के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में कही। मौके पर ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो सुरेंद्र प्रताप सिंह ने बाबा नागार्जुन को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए कहा कि यात्री-नागार्जुन ने आमजन के मुक्ति संघर्षों में न सिर्फ रचनात्मक हिस्सेदारी दी, बल्कि स्वयं भी जन संघर्षों में आजीवन सक्रिय रहते हुए प्रगतिशील धारा के कवि एवं कथाकार के रूप में ख्यात हुए।

विद्यापति सेवा संस्थान के महासचिव डा बैद्यनाथ चौधरी बैजू ने अपने संबोधन में जन कवि के रूप में विश्व विख्यात बाबा नागार्जुन को पद्म पुरस्कारों से अद्यतन वंचित रखे जाने पर निराशा जताते हुए उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किए जाने का डिमांड दोहराया।

ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय के छात्र कल्याण अध्यक्ष डा विजय कुमार यादव ने बाबा नागार्जुन को श्रद्धांजलि अर्पित करते कहा कि लोक शक्ति के उपासक बाबा नागार्जुन मूलतः विपक्ष के कवि थे। जो वर्चस्ववादी सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध की संस्कृति को आजीवन समृद्ध करते रहे। उनकी खासियत रही कि जनहित के विरुद्ध काम करने वालों को उन्होंने कभी नहीं बख्सा। चाहे वे सत्ता पक्ष के हों, विपक्ष के हों अथवा उनके अपने तथाकथित वाम पक्ष के ही क्यों न हों।

पीजी मैथिली विभागाध्यक्ष सह केन्द्रीय पुस्तकालय के प्रभारी पदाधिकारी डा दमन कुमार झा ने आधुनिकता के वर्तमान दौर में पुराने दिग्गज साहित्यकारों को विस्मृत किए जाने पर चिंता जाहिर करते कहा कि बाबा नागार्जुन समतामूलक समाज निर्माण के प्रबल समर्थक थे। विडंबना है कि उनके बाद किसी ने इस दिशा में आवाज बुलंद करने की जहमत नहीं उठाई।
उज्ज्वल कुमार ने कहा कि बैद्यनाथ मिश्र ‘यात्री’ सही अर्थों में भारतीयता की मिट्टी से बने एक ऐसे आधुनिकतम कवि थे, जिन्होंने मातृभाषा मैथिली की माटी से निकलकर हिंदी साहित्य के भंडार में अभूतपूर्व बढ़ोतरी की। दुर्गा नन्द झा ने उन्हें सामाजिक सरोकार को प्राथमिकता देते हुए हमेशा सत्ता की आंख में आंख मिलाकर शब्द-वाण से घायल करने वाले जनकवि के रूप में उल्लेखित किया। प्रो चंद्रशेखर झा बूढ़ाभाई ने अपने संबोधन में यात्री जी की आलोचना के निराले अंदाज को रेखांकित किया।

संस्थान के मीडिया संयोजक प्रवीण कुमार झा ने कहा कि बाबा नागार्जुन न सिर्फ कबीर की तरह अक्खड़, फक्कड़ व बेबाक थे, बल्कि वे जीवन के अंतिम पड़ाव तक व्यवस्था के विरुद्ध लड़ते रहे। इससे पहले उपस्थित लोगों ने लनामिवि के केंद्रीय पुस्तकालय परिसर में स्थापित बाबा नागार्जुन की प्रतिमा पर फूल-माला अर्पित कर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि दी। मौके पर आशीष चौधरी, पुरूषोत्तम वत्स, नवल किशोर झा, मणिभूषण राजू आदि की उल्लेखनीय उपस्थिति रही।