वैदिक ज्ञान का रहा है अंतरराष्ट्रीय प्रभाव : प्रो0 अभिराज
काशी, शिमला,उज्जैन, बंगाल, बिहार सहित अन्य क्षेत्रों के 60 विद्वानों ने किया गहन मंथन
छह दर्जन से अधिक शोध-पत्रों का भी हुआ वाचन
संस्कृत विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ समापन
#MNN24X7 दरभंगा, कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर दर्शन विभाग तथा महर्षि सांदीपनि वेद विद्यापीठ के संयुक्त तत्त्वावधान में वैदिक मंत्रों के दार्शनिक विश्लेषण विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय अखिल भारतीय वैदिक संगोष्ठी का आज समापन हो गया। देश भर से जुटे विद्वानों ने तीन दिनों के अलग अलग सात सत्रों में खूब मंथन किया और वैदिक मंत्रों के व्यवहारिक पक्षों को उजागर करते हुए उसकी प्रमाणिकताओं को भी सिद्ध किया।
समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो0 लक्ष्मी निवास पांडेय ने आनो भद्रा: मन्त्र की व्याख्या करते हुए सभी प्राणियों के लिए सम्भाव रखने की बातें कही। साथ ही उन्होंने संगोष्ठी में विभिन्न राज्यों से आये विशिष्ट विद्वानों के प्रति साधुवाद भी प्रकट किया। वहीं, मुख्यातिथि पद्मश्री पुरस्कार से विभूषित पूर्व कुलपति प्रो.अभिराज राजेन्द्र मिश्र अपने प्रेरक उद्बोधन में उन्होंने वैदिक ज्ञान-परम्परा की वैज्ञानिकता, प्रामाणिकता एवं वैश्विक प्रभाव पर विस्तार से प्रकाश डाला।
प्रो. मिश्र ने वसन्त सम्पात तथा पुनर्वसु नक्षत्र की विशिष्टता को रेखांकित करते हुए कहा कि इनके माध्यम से भारतीय कालगणना की प्राचीन वैज्ञानिक दृष्टि स्पष्ट होती है। उन्होंने लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक द्वारा प्रमाणित तिथि-निर्धारण के महत्त्व को रेखांकित करते हुए इसके संदेश को व्यापक रूप से जन-जन तक पहुँचाने का आह्वान किया। साथ ही उन्होंने वैदिक खगोलशास्त्र को समझने के लिए ‘ओरायन’ ग्रंथ के अध्ययन पर विशेष बल दिया।उन्होंने कहा कि ईसा से लगभग 1100 वर्ष पूर्व अरब देशों में वेदों का अध्ययन एवं अध्यापन होता था, जो वैदिक ज्ञान के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव का प्रमाण है।
इसके साथ ही उन्होंने ‘अजत अरबीयन महादेव’ की अवधारणा का उल्लेख करते हुए सांस्कृतिक समन्वय की ओर संकेत किया। प्रो. मिश्र ने अपने संबोधन में कहा कि विश्व की विभिन्न परम्पराओं के निर्माण में वेदों से मार्गदर्शन प्राप्त हुआ है जो भारतीय दर्शन की सार्वभौमिकता को दर्शाता है।
कार्यक्रम के अंत में उन्होंने अपनी सशक्त और भावपूर्ण कविताओं के माध्यम से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उनका उद्बोधन बौद्धिक गाम्भीर्य के साथ-साथ भावनात्मक ऊँचाई लिए हुए था, जिसे उपस्थित विद्वानों एवं श्रोताओं ने अत्यन्त सराहा। उक्त जानकारी देते हुए पीआरओ निशिकांत ने बताया कि काशी, शिमला,उज्जैन, बंगाल, बिहार सहित अन्य क्षेत्रों के करीब 60 विद्वानों ने संगोष्ठी में गहन मंथन किया और छह दर्जन से अधिक शोध-पत्रों का वाचन भी किया गया।
इसी क्रम में सारस्वतातिथि प्रो.सुरेश्वर झा ने वेद को स्वत: प्रमाण के रूप में परिभाषित करते हुए वैदिक मंत्रों का दार्शनिक विश्लेषण किये। उन्होंने वेद मन्त्रों के गूढ़ अर्थों को भी बताया। मुख्यातिथि मानपुर गया के डा. संजय कुमार उर्फ सुदर्शनाचार्य महाराज ने असतो मा सद्गमय, सत्यं वद,धर्मं चर, आचार्य देवो भव जैसे वैदिक सुक्तियों को परिभाषित किया।
अन्य सत्र की अध्यक्षता करते हुए बीएचयू के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो.कमलेश कुमार झा ने मंडन मिश्र, बच्चा झा, उदयनाचार्य, आदि महापुरुषों के दर्शन में योगदान का वर्णन किये। वेद विद्या के सभी मंत्र दर्शन से परिपूर्ण है। उन्होंने कहा कि सभी दर्शनों की उत्पत्ति भूमि मिथिला है।
वहीं पूर्व प्रतिकुलपति प्रो. सिद्धार्थ शंकर सिंह ने वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना विकसित करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि ज्ञान की महिमा को समाज तक पहुंचाना हमारा कर्तव्य है। वैदिक शान्ति मंत्रों का विवेचन करते हुए उन्होंने 18 विद्याओं की विस्तार से चर्चा की । वहीं, प्रो.जयशंकर झा ने वैदिक मंत्रों का लौकिक जीवन में उपयोगिता पर बल दिया। समापन सत्र में आगत अतिथियों का स्वागत संगोष्ठी के परिकल्पक कुलसचिव प्रो.ब्रजेशपति त्रिपाठी ने कहा कि मिथिला ज्ञान की धरती रही हैं। दर्शन व मीमांसा का यहां लम्बा इतिहास है। उन्होंने वेद अध्ययन पर भी जोर दिया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ.शशिकांत तिवारी तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ.सुधीर कुमार ने किया।
संगोष्ठी का संयोजक दर्शन विभागाध्यक्ष डॉ धीरज कुमार पाण्डेय तथा सह संयोजक साहित्य विभाग के प्राध्यापक डॉ.सुधीर कुमार थे ।
कार्यक्रम में प्रो.दिलीप कुमार झा, प्रो.दयानाथ झा, प्रो.पुरेंद्र वारिक, डॉ.घनश्याम मिश्र, डॉ.सुनील कुमार झा, प्रो. विनय मिश्र, डॉ.ध्रुव मिश्र, डॉ.रामसेवक झा, डॉ.रितेश चतुर्वेदी, डॉ.शम्भु शरण तिवारी, डॉ.निशा, डॉ.सविता आर्या , डॉ.माया , डॉ.यदुवीर स्वरूप शास्त्री, डॉ.छविलाल , डॉ.अवधेश श्रोत्रिय, डॉ.सन्तोष तिवारी, डॉ.विभव कुमार झा सहित दर्जनों प्राध्यापक, कर्मचारी एवं छात्र -छात्राएं उपस्थित थे।
