#MNN@24X7 दरभंगा, टाटा मेमोरियल सेंटर की ओर से कल दरभंगा चिकित्सा महाविद्यालय के ऑडिटोरियम में मेडिकल सर्टिफिकेशन आफ कॉज आफ डेथ (एमसीसीडी) पर एक वर्कशाप आयोजित किया गया, जिसमें अस्पताल के विभिन्न विभागों से चयनित प्रतिभागियों को टाटा मेमोरियल अस्पताल के प्रशिक्षकों ने एक दिवसीय प्रशिक्षण दिया।

कार्यक्रम का विधिवत उद्घाटन प्राचार्य डॉ के एन मिश्रा, अधीक्षक डॉ हरिशंकर मिश्रा, पीएसएम के विभागाध्यक्ष डॉ हेमकांत झा, डॉ पीके लाल, डॉक्टर ओम प्रकाश और टाटा मेमोरियल अस्पताल के प्रशिक्षकों ने दीप जलाकर किया। अपने उद्घाटन भाषण में डॉ मिश्रा ने कहा प्रत्येक जन्म और मृत्यु का मेडिकल सर्टिफिकेशन ऑफ डेथ 1969 के तहत रजिस्ट्रेशन जरूरी है। 1अप्रैल 1970 से यह एक पूरे देश में प्रभावी है। मृत्यु के अवस्था में इस रजिस्ट्रेशन के लिए एक विशेष फॉर्म इस्तेमाल किया जाता है। इसे अंतरराष्ट्रीय रूप में डब्ल्यूएचओ ने विकसित किया और इसे 2016 में रिवाइज किया है। प्रशिक्षण के अभाव में यह कार्यक्रम अभी तक पूरी तरह देश में कार्यरत नहीं है।

ज्ञातव्य है कि एबीडी एक्ट 1969 के सेक्शन 10 के तहत जिस चिकित्सक ने किसी की मृत्यु के पहले 1 सप्ताह चिकित्सा दी है उसे बिना कोई चार्ज के सर्टिफिकेट देना है। इसी एक्ट के सेक्शन 23 (3) के तहत चिकित्सक द्वारा प्रमाण पत्र निर्गत न करने पर दंड का प्रावधान है।

अधीक्षक डॉ हरिशंकर मिश्रा ने कहा प्रशिक्षण के अभाव के कारण इस फार्म को अनियमित ढंग से भरा जाता है जिसमें सारे मृत्यु को कार्डियो पलमोनरी एरेस्ट के रूप में दर्ज किया जाता है। मुझे आशा है इस प्रशिक्षण को प्राप्त करने के बाद चिकित्सक मृत्यु के प्राइमरी और सेकेंडरी कारण को पहचान कर सही से दर्ज कर सकेंगे, जिससे संस्थान और सरकार को भी यह जानने में सुविधा होगी कि हमारे यहां मृत्यु के कौन कौन से कारण हैं। मृत्यु फार्म के द्वारा सूचित कारणों को समयबद्ध तरीके से स्थानीय से राज्य, देश और विश्व स्तर पर एकत्रित किया जाता है।प्रशिक्षकों ने उदाहरणों के द्वारा मृत्यु के कारणों को वर्गीकृत करना सिखाया।इन कारणों को डब्ल्यूएचओ के आइसीडी 10 तालिका के अनुसार अल्फान्यूमैरिक क्लासिफिकेशन किया जाता है, जिससे पूरे विश्व में उन्हें एक ही तरह वर्गीकृत किया जा सके।

आइसीडी10 का इस्तेमाल कर डब्लू एच ओ पूरी दुनिया में मृत्यु के कारणों का एकरूपता के साथ वर्गीकृत कर इलाज और स्वास्थ्य कार्यक्रम विकसित करने में इस्तेमाल करती है।
संस्थागत मृत्यु के लिए सीडीआर का फॉर्म 4 ए और फॉर्म 4 बी इस कार्य के लिए प्रयुक्त होता है। शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ केएन मिश्रा ने बताया की 2017 से शिशु विभाग में इस फार्म का इस्तेमाल नियमित रूप से किया जाता है।