संत शिरोमणी रविदास जयंती विशेष

#MNN@24X7 संत रविदास को भक्ति काल के महान दार्शनिकों में गिना जाता है. हर साल माघ पूर्णिमा(Magh Purnima), पूर्ण चन्द्रमा के दिन रविदास जयंती मनाई जाती है. वे एक समाज सुधारक थे. उन्होंने कई भक्ति और सामाजिक संदेशों को अपने लेखन के जरिए अनुनायियों, समुदाय और समाज के लोगों के लिए ईश्वर के प्रति प्रेम भाव को दर्शाया. संत रविदास को आज भी लोग याद करते हैं. उनके जन्म महोत्सव के दिन लोग महान धार्मिक गीतों, दोहों और पदों को सुनते हैं.

वैसे तो उनको पुरे विश्व में सम्मान दिया जाता है मगर उत्तर प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र में उनके भक्ति आंदोलन और भक्ति गीत को कुछ अलग तरह से सम्मान दिया जाता है. हालांकि उनकी सही जन्म तिथि आज तक सामने नहीं आई है. मगर एक अनुमान लगाया जाता है की उनका जन्म 1376, 1377, और 1399 के बीच हुआ था. उनके पिता राजा नगर मल के राज्य में सरपंच थे और उनका जूते बनाने का व्यापार भी था.

संत रविदास बचपन से ही भगवान की भ​क्ति में लीन थे. उनको तथाकथित आक्रांताओं के काल खंड में बनाए गए नियमों और मुश्किलों का सामना करना पड़ा था. इसक वर्णन उन्होंने अपने लेखों में भी किया है. बचपन में संत रविदास को पंडित शारदा नन्द पाठशाला में पढ़ने से रोका गया. अपने ही समाज के लोगों द्वारा उन्हें वहां पढ़ने के लिए मना कर दिया गया. मगर उनके विचारों को देख पंडित शारदा नन्द को यह एहसास हुआ की संत रविदास बहुत ही प्रतिभाशाली हैं और उन्होंने पाठशाला में दाखिला दे दिया.
बचपन में संत रविदास अपने गुरू पंडित शारदा नन्द के पुत्र अच्छे मित्र बन गए थे. रोज दोनों लुकाछिपी खेलते थे. एक दिन उनका दोस्त खेलने नहीं आया. जब बहुत देर तक वह नहीं आया तो रविदास उनके घर गए. जब वे घर पहुंचे तो उन्हें पता चला की उनके मित्र की मृत्यु हो चुकी है. सभी शव को घेरकर मातम मना रहे हैं. तभी रविदास पंडित शारदा नन्द के पुत्र के शारीर के पास जाकर बोले–अभी सोने का समय नहीं है, चलो लुकाछिपी खेलें. उनके यह शब्द सुनकर मित्र जीवित हो उठा. ये दृश्य देखकर हर कोई हैरान रह गया.

संत रविदास के महत्वपूर्ण उपदेश

1.रैदास जन्म के कारणै, होत न कोई नीच.
नर को नीच करि डारि हैं, औछे करम की कीच..
मतलब- व्यक्ति पद या जन्म से बड़ा या छोटा नहीं होता है, वह अपने गुणों या कर्मों से महान या छोटा होता है.
2. ‘जन्म जात मत पूछिए, का जात और पात.
रैदास पूत सम प्रभु के कोई नहिं जात-कुजात..
मतलब- वे समाज में वर्ण व्यवस्था के खिलाफ थे. उन्होंने कहा है कि सभी प्रभु की ही संतानें हैं, किसी की कोई जात नहीं है
3. रविदास जी ने बताया है कि सच्चे मन में ही प्रभु का वास होता है. जिनके मन में छल कपट होता है, उनके अंदर प्रभु का वास नहीं होता है. संत रैदास ने कहा है कि मन चंगा तो कठौती में गंगा.
4. संत रविदास ने दुराचार,अधिक धन का संचय, अनैतिकता और मांसाहार को गलत बताया है. उन्होंने अंधविश्वास, भेदभाव, मानसिक संकीर्णता को समाज विरोधी बताया है.
5. संत रविदास कर्म को प्रधानता देते थे. उनके अनुसार व्यक्ति को कर्म में विश्वास करना चाहिए. आप कर्म करेंगे, तभी आपको फल की प्राप्ति हो सकेगी. फल की चिंता से कोई कर्म न करें.
6. संत रैदास के अनुसार व्यक्ति को अभिमान नहीं करना चाहिए. दूसरों को बिल्कुल भी तुच्छ न समझें. उनकी क्षमता जिस कार्य को करने की है, उसे आप नहीं कर सकते.
7. वे अपने संदेशों में कहते हैं कि हम सभी यह सोचते हैं कि संसार सबकुछ है, मगर यह बिल्कुल सत्य नहीं है. परमात्मा ही सत्य है.