#MNN@24X7 दिनांक 25 मार्च, कृषि विज्ञान केंद्र, जाले के द्वारा प्राकृतिक खेती परियोजना अंतर्गत धनकौल गांव में प्राकृतिक विधि से धान की खेती विषय पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्देश्य प्राकृतिक विधि द्वारा आगमी फसल, धान की खेती प्राकृतिक रूप से करने के लिए अवगत कराना था।

कार्यक्रम की संयोजिका पूजा कुमारी ने बताया कि प्राकृतिक खेती परियोजना के अंतर्गत धनकौल गांव का चयन किया गया है तथा रबी सीजन में यहां के ग्रामीणों ने प्राकृतिक विधि से गेहूं की खेती की थी। अभी किसानों ने मूंग की खेती भी प्राकृतिक तरीके से की है। आगामी फसल धान की खेती किसान भाई प्राकृतिक विधि से करने के लिए क्या-क्या कार्य करने होंगे इनसे अवगत कराया। बीजों के संशोधन के लिए प्राकृतिक खेती अंतर्गत बीजामृत का प्रयोग करने के लिए बताया।

उन्होंने कृषकों से घर में बीजामृत तैयार करने की विधि बताते हुए कहा की बीजामृत तैयार करने के लिए किसान भाई देसी गाय का गोबर 5 किलो, गोमूत्र 5 लीटर ,चुना या खली 250gm, पानी 20 लीटर और खेत की मिट्टी एक मुट्ठी लेकर इन सभी को घोलकर 24 घंटे के लिए छोड़ दें दिन में दो बार लकड़ी से इसे हिलाना है। इसके बाद बीजों के ऊपर वीजा में डालकर उन्हें छाया में सुखाकर फिर बुवाई करना है। फसलों में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए किसान भाई जीवामृत तथा घन जीवामृत का प्रयोग करेंगे। जीवामृत बनाने के लिए किसान भाई देसी गाय का गोबर 10 किलो, देसी गाय का गोमूत्र 10 लीटर, गुड़ एक से डेढ़ किलो, बेसन एक से डेढ़ किलो, पेड़ से की मिट्टी एक मुट्ठी तथा पानी 200 लीटर लेना है। सभी सामग्रियों को घोलकर 2 दिनों तक छाया में रखकर छोड़ दें। सुबह शाम एक बार इसे मिला लेना है।

इसके बाद किसान भाई इसका प्रयोग अपने फसल में कर सकते हैं। प्रशिक्षण के बाद पूजा कुमारी ने प्राकृतिक विधि द्वारा की गई मूंग की खेती के खेतों का भी निरीक्षण किया। इस कार्यक्रम में धनकौल गांव के किसान रामनाथ महतो जी, सूर्य देव महतो जी, राम नारायण यादव जी, मनोज कुमार यादव जी, मनोज कुमार यादव जी, सत नारायण यादव जी तथा अन्य किसान उपस्थित थे।