विश्वविद्यालय प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग द्वारा बुद्ध पूर्णिमा जयंती समारोह आयोजित।

बौद्धदर्शन की शांति एवं अहिंसा के सिद्धांत को अपनाने से समाज का सर्वांगीण विकास एवं कल्याण संभव-डा चौरसिया।

‘शांति एवं अहिंसा के दूत के रूप में महात्मा बुद्ध की प्रासंगिकता’ विषयक संगोष्ठी सह भाषण प्रतियोगिता का हुआ आयोजन

#MNN@24X7 ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा के स्नातकोत्तर प्राचीन भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व एवं संस्कृति विभाग के तत्वावधान में बुद्ध जयंती की पूर्व संध्या पर “शांति एवं अहिंसा के दूत के रूप में महात्मा बुद्ध की प्रासंगिकता” विषयक संगोष्ठी सह भाषण प्रतियोगिता” का आयोजन विभाग में किया गया। सामाजिक विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो प्रभास चन्द्र मिश्र की अध्यक्षता में आयोजित समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ इतिहासकार डा अवनीन्द्र कुमार झा, विशिष्ट अतिथि विश्वविद्यालय इतिहास विभागाध्यक्ष डा नैयर आजम, मुख्य वक्ता के रूप में संस्कृत- प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया, विशिष्ट वक्ता के रूप में एम एल एस एम कॉलेज के प्राचीन भारतीय इतिहास के विभागाध्यक्ष डॉ भास्कर नाथ ठाकुर एवं प्राध्यापक डा राम कुमार मिश्र, कार्यक्रम- संयोजिका डा प्रतिभा किरण, शोधार्थी- पुष्पांजली, विभागीय छात्रा- सिद्धि सुमन झा, नेहा तथा रश्मि आदि सहित 50 से अधिक व्यक्तियों ने भाग लिया।

अध्यक्षीय संबोधन में प्रो प्रभास चन्द्र मिश्र ने कहा कि प्रत्येक दर्शन की तरह बौद्धदर्शन का भी वैज्ञानिक कारण है। महात्मा बुद्ध वास्तव में शांति एवं अहिंसा के अग्रदूत थे, जिनकी शांति एवं अहिंसा की नीति की सार्वदेशिक एवं सार्वकालिक प्रासंगिकता है। उन्होंने कहा कि तत्कालीन प्रमुख धर्म में आयी विकृतियों के कारण बौद्ध धर्म आमलोगों के बीच लोकप्रिय हुआ।

डा अवनीन्द्र कुमार झा ने कहा कि विश्व की तमाम प्राचीन सभ्यताओं में छठी सदी ईस्वी पूर्व में प्रचलित व्यवस्था के विरोध में सामाजिक एवं धार्मिक आंदोलन प्रारंभ हुए थे। भारत में भी इसी समय चार्वाक, आजीवक, बुद्ध एवं जैन आदि समाजसुधारकों के नेतृत्व में आंदोलन हुए थे, जिनमें महात्मा बुद्ध द्वारा चलाया गया आंदोलन सर्वाधिक प्रभावकारी सिद्ध हुआ। डा नैयर आजम ने कार्यक्रम आयोजन के लिए विभाग एवं डा प्रतिभा किरण को बधाई एवं शुभकामनाएं देते हुए प्रतिभागियों के उज्ज्वल भविष्य की कामना की।
मुख्य वक्ता के रूप में संस्कृत के प्राध्यापक डा आर एन चौरसिया ने कहा कि बौद्ध धर्म- दर्शन सामाजिक समानता पर आधारित था जो व्यावहारिक, परिष्कृत, सरल एवं आमलोगों का धर्म था जो तेजी से सामान्य लोगों के बीच प्रचारित एवं प्रसारित हुआ। इस धर्म के विदेशों में विस्तार से भारत की प्रतिष्ठा विदेशों में भी बढ़ी। उन्होंने कहा कि बौद्धदर्शन की शांति एवं अहिंसा के सिद्धांत को अपनाने से समाज का सर्वांगीण विकास एवं सतत कल्याण संभव है।

डा भास्कर नाथ ठाकुर ने कहा कि महात्मा बुद्ध ने अनुभूत ज्ञान को उपदेश के रूप में दिया, जिससे हम आज भी अपना रहे हैं। शांति और अहिंसा बौद्ध धर्म का मूल मंत्र है, जिनके माध्यम से समाजसुधार किया जा सकता है। डा राम कुमार मिश्र ने कहा कि बुद्ध ने मध्यम मार्ग को अपनाया था। उनका सिद्धांत करुणा एवं मैत्री पर आधारित है। सनातन धर्म के विचलित हो जाने तथा उसमें अनेक कुरीतियां आ जाने के कारण परेशान समाज को बुद्धदर्शन ने सही मार्ग दिखाया। बुद्ध ने दुःख के कारण तथा उनका समाधान भी बतलाया।
इस अवसर पर आयोजित भाषण प्रतियोगिता में कुल 34 प्रतिभागियों ने भाग लिया, जिनमें सुभाष कुमार पासवान (इतिहास)- प्रथम, रश्मि कुमारी (प्राचीन भारतीय इतिहास)- द्वितीय, ज्ञानी कुमार (मैथिली)- तृतीय तथा अक्षय कुमार झा (राजनीति विज्ञान) एवं सुजीत राम (भूगोल) ने संयुक्त रूप से चतुर्थ स्थान प्राप्त किया, जिन्हें विभाग की ओर से प्रमाण पत्र एवं पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।

बुद्ध के चित्र पर फूल- माला एवं दीप प्रज्वलन से समारोह प्रारंभ हुआ, जबकि अंत सामूहिक राष्ट्रगान जन गण मन… से। आगत अतिथियों का स्वागत एवं संचालन विभागीय शिक्षिका डा प्रतिभा किरण के कुशल नेतृत्व में हुआ, जबकि धन्यवाद ज्ञापन शोधार्थी- पुष्पांजली ने किया।

विभागीय शिक्षिका डा प्रतिभा किरण ने बताया कि आगामी 26 मई को विभाग में आयोजित कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियों को सहभागिता प्रमाण पत्र तथा सफल प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र एवं पुरस्कार प्रदान किया जाएगा।