#MNN@24X7 ई पावनि आश्विन अश्विन शुक्ल पूर्णिमा केँ मनाओल जाइछ। एहि दिन लोक अपन घर आंगन नीक क’ नीपैत छथि। साँझमे दोआरि परसँ भगवतीक चिनवार धरि एकटा पिठारक अरिपन देल जाइत अछि। एकर बाद भगवतीकेँ लोटाक जलसँ घर करैत छथि। भगवतीक चिनवारपर कमलक अरिपन द’ ओहिपर सिन्दूर लगा एकटा लोटामे जल भरि राखि ओहिपर आमक पल्लव द’ तामक सराइमे एकटा चानीक सिक्का राखि ताहिपर लक्ष्मी पूजा करैत छथि। प्रसादमे अँकुरी, पान, मखान, केरा, मिसरी आ नारियल भोग लगबैत छथि। तकरबाद प्रसाद बाँटल जाइछ। ई काज घरक प्रसिद्ध महिला करैत छथि। भगवती घर करबाक मंत्र – “अन धन लक्ष्मी घर आउ। दरिद्रा बाहर जाउ।”

कोजागराक अवसरपर नव विवाहित वरकेँ सासुरसँ कपड़ा लत्ता भार दोर अबैत छनि। सांझमे अड़ोस पड़ोसक लोककेँ हकार पड़ैत छनि। रातिमे अधपहरा देखि वरक चुमाओन कएल जाइत छनि। भौज संगे वर कौड़ी खेलाइत छथि। यदि दुरागमन भ’ गेल रहैत छैक त’ कनियाँ द्वारा चुमाओनक विधि देखब वर्जित अछि। आंगनमे देल अष्टदल अरिपनपर वरक सासुरसँ आयल डाला राखि सामनेमे पुरहर, पातिल आ कलशक अरिपन द’ ताहिपर धान द’ कलशमे आमक पल्लव द’ राखल जाइछ आ पातिलमे करू तेलक दीप जरैत अछि।

एकटा पीढ़ीपर अरिपन सेहो देल रहैत छैक जे अष्टदलक पश्चिम राखल जाइछ। चुमाओनक डाला पर मखान, पाँच टा नारिकेल,पाँच हत्था केरा, दहीक छाँछ,पानक ढोली,गोटा सुपारी, मखानक माला, धुनेश,सुपारीक गाछ, जनौक गाछ, दक्षिणी, अड़ाँची,चानीक कौड़ी, पचीसी, शतरंज आदि रहैत अछि। पान धान आ दूबिसँ वरकेँ अंगोछल जाइत छनि तहन दहीसँ चुमाओल जाइत छनि। कजरौटीक काजरसँ आँखि कजराओल जाइत छनि। पाँच बेर अंगोछल जाइत छनि।वर सासुरसँ आयल नव पीढ़ीपर पूब मूँहेँ बैसैत छथि।तहन हुनक चुमाओन कएल जाइत छनि। चुमाओनक उपरांत कमसँ कम पाँच ब्राह्मण दुर्वाक्षत ल’ मंत्र पढ़ि दुर्वाक्षत दैत छथिन। तखन वर उठि क’ अपनासँ श्रेष्ठकेँ प्रणाम करैत छथि। ओकर बाद हुनका लोकनि केँ भोजन भात करा पान मखान परसल जाइछ। एकरबाद सब अपन घर जाइत छथि।

दुर्वाक्षतमन्त्र-:
ऊँ आब्रह्मन् ब्रह्मनो ब्रह्मवर्चसी जायतांमाराष्ट्रे राजन्यः शूर इषव्योतिव्याधी महारथो जायताम् दोग्ध्री धेनुर्वोढ़ा’न वानाशुः सप्तिः पुरन्ध्रिर्योषा विष्णु रथेष्ठा सभेयो युवा’स्य यजमानस्य वीरो जयताम् निकामे निकामे न: पर्ज्जन्यो वर्षतु फलवत्यो न ओषधय पच्यन्ताम् योगक्षेमो न कल्पताम्। मंत्रार्थाय सिद्ध्यः सन्तु पूर्णाः सन्तु मनोरथाः,
शत्रूणां बुद्धिनाशोस्तु मित्राणामुदयस्तव। दीर्घायुर्भव।।

मिथिलाक लोकसंस्कृतिमे ई परम्परा सदियोंसँ चलैत आबि रहल अछि। एकर आरंभ त्रेतायुगसँ राजा जनक द्वारा भेल छल। पहिल कोजागरा भगवान रामक लेल राजा जनक केने छला। जनक राम आ सीताक लेल कोजागराक पूजा क’ अपना ओतयसँ रामक लेल पान,केरा मखान, लड्डू आदि भारक रूपमे पठौने छलथिन। तहियेसँ एखनधरि ई पावनि कोजागराक रूपमे मनाओल जा रहल अछि। नवविवाहित वर कनियाँक सुख शांतिक लेल ई पावनि मनाओल जाइछ।

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लेखक-:
©अखिलेश कुमार झा।