दरभंगा। 9अप्रैल। मिथिला लेखक मंच का वार्षिक अधिवेशन जीएम रोड स्थित सीतायन सभागार में डा रामभरोस कापड़ी भ्रमर(नेपाल)की अध्यक्षता एवं उद्घाटन डा रामानंद झा रमन ने किया।

रमणजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि लेखक सदा अपनी रचनाओं के द्वारा साहित्य को गतिमान रखा जाता है। मैथिली साहित्यकार मैथिली संस्था और आम लोगों के बीच एकरुपता नहीं है जो चींता का विषय है।
इस अवसर पर प्रो उदय शंकर मिश्र ने कहा कि वंग्ला लेखिका ने लज्या नामक उपन्यास के माध्यम से व्यवस्था को झकझोरने का काम किया जो मैथिली क्षेत्रों में देखने को नहीं मिला है। मिथिला में भाषाई स्वाभिमान नहीं है। मैथिली के अपमान पर साहित्यकार सड़क पर नहीं आते हैं।
आयोजक सह संचालक श्रीचन्द्रेश ने कहा कि साहित्यिक सांस्कृतिक गोष्ठी आयोजित करती है। साहित्यिक वातावरण बनाने का काम मिथिला लेखक मंच करती है।
इस अवसर पर साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त श्री जगदीश मंडल ने मैथिली साहित्य मे सतत सेवा करते रहेंगे।
डा कमला चौधरी ने कहा कि मैथिली पर सरकार द्वारा बार बार आक्रमण किया जा रहा है। मैथिली पढ़ने वाले की संख्या घट रही है।इसका समाधान खोजने की जरूरत है।
श्री शशिबोध मैथिली साहित्यकार ने मैथिली आन्दोलन में साहित्यकारों को आगे आना होगा।
डा प्रीतम निषाद ने कहा कि मैथिली भाषा को प्राथमिक से लेकर माध्यमिक शिक्षा तक मैथिली माध्यम से होना चाहिए। इसके लिए हमलोग लगे हुए हैं।
इस अवसर पर आगत अतिथियों का स्वागत डा श्री शंकर झा ने किया । जय जय भैरवि भगवती गीत का गायन प्रो चन्द्रमोहन झा परवा ने किया। स्वागत गीत डा सुषमा ने प्रस्तुति किया।
अध्यक्षीय भाषण में भ्रमर ने कहा कि कि ने कहा कि नेपाल मे 7 करोड़ मैथिली भवन बन रहा है। मैथिली साहित्य मे भारत के बनिस्पत नेपाल में अधिक हो रहा है।
इस अवसर पर मैथिली लोक संस्कृत मंच द्वारा प्रकाशित “अछिन्जल” पत्रिका और “सपत” बाल नाटक का बिमोचन हुआ।
इस अवसर पर डा कमलकांत झा, डा भवेश झा, डा उषा चौधरी, स्वर्णिम किरण प्रेरणा,डा योगानंद झा, श्याम विहारी राय सरस, कमलेश झा, डा विद्यानाथ झा, डा शंभू नाथ झा, भास्कर जी, राम कुमार झा, ने भाग लिया। बुढ़ा भाई ने धन्यवाद ज्ञापित किया।