#MNN@24X7 मिथिलांचल के प्रसिद्ध लोकपर्व सामा-चकेवा की शुरूआत आज से हो चुकी है। छठ के बाद इस लोकपर्व का अपना अलग ही महत्व है। भाई-बहन का ये त्योहार सात दिनों तक चलता है। सामा-चकेवा के गीतों से गांव गुलजार होने लगे हैं।

मिथिलांचल के इलाके की अपनी खास लोक संस्कृति है. यहां के रीति-रिवाज, खान-पान और पर्व-त्योहार क्षेत्र को विशिष्ट पहचान दिलाते हैं. यहां के लोक उत्सवों में प्रमुख है- सामा चकेबा इस पर्व की चर्चा पुराणों में भी है. सामा-चकेवा पर्व की समाप्ति कार्तिक पूर्णिमा के दिन होगी.

इस पर्व के दौरान बहनें सामा, चकेवा, चुगला, सतभईयां को चंगेरा(डलिया)में सजाकर पारंपरिक लोकगीतों के जरिये भाईयों के लिए मंगलकामना करती हैं.संध्याकाल होते ही ” गाम के अधिकारी तोहे बड़का भैया हो”, “छाऊर, छाऊर, छाऊर, चुगला कोठी छाऊर भैया कोठी चाऊर “, ” साम चके साम चके अबिह हे, जोतला खेत मे बैसिह हे ” और भैया जीअ हो युग युग जीअ हो” सरीखे लोकगीत और जुमले के साथ बहन चुगला दहन करती हैं.

मिथिलांचल में तेजी से बढ़ रही बाजारवादी और शहरीकरण के बावजूद यहां के लोग अपनी संस्कृति को अक्षुण्न बनाये हुए हैं.