पाठकीय
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दकचल समय पर रेख ( कवि : कृष्ण मोहन झा ” मोहन “, विधा: कविता , पृष्ठ 104 (सजिल्द), प्रकाशक : अंतिका प्रकाशन प्रा0 लि0 ,गाजियाबाद-201005 ,फोन 91 7004917511 , मूल्य : ₹250/-)

“दकचल समय पर रेख” श्री कृष्ण मोहन झा “मोहन”क मैथिलीमे दोसर कविता संग्रह प्रकाशित भेलनि अछि । एहिसँ पूर्व हिनक पहिल संग्रह छलनि ” ग्लोबल गाम सँ अबैत हकार “( 2017 )। हिनक पहिले संग्रह मैथिली साहित्यानुरागीक ध्यान आकर्षित कयने छल । खूब पढ़ल आ पसिन्न कयल गेल छल।
कवि बदलैत समयक दुष्प्रभावसँ बहुत चिन्तित छथि , समाजक कॉरपोरेटीकरण होयब , राजनैतिक मर्यादाक स्खलन देखब,, नेताक विकृति रूप डकैतोसँ बेसी भयाओन लागव, , कोरोनाक दुःस्थितिमे मजदूरक बदहाली देखब , हिनक कवि हृदयकेँ आन्दोलित कय दैत छनि ।
एक निम्नवर्गीय आयवला परिवारक व्यक्ति कतेक कष्टसँ अपन समाजमे उपस्थिति भान करबैत अछि , बाल्यकालमे पिता ,माय , काका , भौजी आदिक चित्र कविकेँ झलकि उठैत छनि आ कहैत छथि , जकरा आइ हमरा लोकनि चकाचौंध जिनगीमें जीवाक विकास बुझैत छियैक , भय सकैत अछि , जीवनक संकट ओतेक बढ़ि रहल अछि,विनाश दिस जा रहल अछि ।
कविताक जे मर्यादा छैक ,ओकरा कवि अक्षरशः पालन कयलनि अछि , अक्षुण रखबाक प्रयास कयलनि अछि ,देशज शब्दक प्रयोग आ उचित जगहपर उपयोग कय कविताकेँ समकालीन साहित्यकेँ महत्वपूर्ण तथा प्रामाणिक बनबैत अछि ।
कवि अपन पोता द्वयकेँ पोथी समर्पित कयलनि अछि । हाथसँ कलम छीनि जखन दवालकेँ दकचि दैत अछि , तँ कवि सोचय लगैत छथि – ” मुदा अनायासे / सोचय लगैत छी–/ समयक दकचले पन्ना पर त ‘ /पाड़क छनि हिनका / भविष्यक अपन जीवन रेख / ”
“आकार लैत भूख”मे मायक चित्र जे झलकि उठैत छनि ,से कतेक मार्मिक:- ” एहि फिरसानीमे / चुलहा पजरैत छलै / आ कि पजरि जाइत छल माय/ से कहि नहि सकैत छी ।” आगाँ देखल जाय -” तैं हम कोनो सुखीतगर हाथक / अरिपन नहि / मेनाक पात परहक / लाल -उज्जर ठोप छी । ”
हिनकर एक कविता छनि ” हमर भौजी ” । सामान्यतया भौजीपर कविता हास्य रूपमे भेटत । मुदा अपन अभावग्रस्त जीवनमे , संयुक्त परिवारक भौजीक चित्रण कतेक सटीक आ प्रेरणादायक कविता लिखलनि अछि -” घरक अभावकेँ / ओरिआओनक उपाति सँठैत / जखन अदौड़ी खोंटैत छलि / आ कि डेमसी सँ / फूल काढ़ैत छलि / कर्म-सौन्दर्यक फुलवारी जकाँ / हमर भौजी / हमरा बड़ नीक लगैत छलि / … एहिना पिता (डबरा मे कमल फुलेलै ), कक्का (अधजरू खाम्ह )सोचबाक लेल विवश करैत अछि । अधजरू खाम्हक एक अंश देखल जाय -” मुदा हमर कक्का / बताह नहि छलाह / ओ तँ अगिलग्गीबला घरक / अधजरू खाम्ह छलाह / जकरा पर फेर कहियो / बड़ेड़ी नहि चढ़लैक। ”
प्रजातंत्रक बदलैत स्वरूपपर हिनक दृष्टि कतेक सटीक छनि , बिम्ब कतेक सबल छनि -”
आब बुझि रहल अछि दूभि / पाथर सभ कतौ आन ठाम नहि गेलै / किछु देशक सरकार / त’ किछु सरकारक ठिकेदार बनि गेलै / आ पाथरेक नाम / प्रजातंत्र भ ‘गेलै ।”
कोनो महत्वपूर्ण पाँतिक उदाहरण प्रस्तुत करबाक लेल जखन किताब उन्टेबै छी ,तँ लगैत अछि , सभ कविताक इहो उद्धरण योग ,ओहो मन मस्तिष्कमे उद्वेलित करबाक योग ,सभ टा कविताक कोनो ने कोनो बिन्दु पढ़बाक योग छैक ,तै यदि हम एतय प्रस्तुत कय देब ,तँ अपने लोकनि सोचब , किताबक मुख्य अंश तँ हम पढ़िये लेलहुँ , किताब पढ़बाक कोन प्रयोजन !
” एक टा चित्र ” जे कवि देखल रहल छथि – हुनकर आँखिसँ हमरो लोकनि देखी ,लागत हमरहि उकेरल चित्र कृष्ण मोहन जी अपन किताबमे द ‘ देलथिन अछि -”
” आब डाकूक चित्र बनेबा लेल / जंगल , पहाड़ / आकि कोनो घाटीक / आवश्यकता नहि /
बनाओल जा सकैत अछि / एक टा पैघ अहाताबला बंगलोई / आ घोड़ाक बदला मे / बुलेट / लक्जरी कार / वा हेलीकॉप्टरो / देखाओल जा सकैत अछि ”

अन्तमे मात्र कविताक एक अंश उद्धृत कय समाप्त करय चाहब, समाजमे व्याप्त अराजकताक भयावहता एतेक बढ़ि गेलैक अछि ,तकरा कविक नजरि कोना देखैत अछि ,दृष्टि कतेक साफ-साफ देखैत अछि ,परिस्थितिसँ कोन तरहेँ परिचित करबैत अछि जे हिनक लेखनीक समृद्धताक परिचायक अछि ,आधुनिक समकालीन कविताक उच्च मानदण्डक प्रतीक बनल अछि ।
” आँगनक तुलसी चौरा पर / एमहर बेर-बेर / तुलसीक गाछ / मौलाय क” / सुखा जाइत अछि / आ चौराक ठीक बगल मे / मेरिचाइक एगो अनेरुआ गाछ / अनेरो फौदाइत जा रहल अछि /
हितनाथ झा
30/03/2022