मिथिलांचल के संपूर्ण इलाका के अपन खास लोक संस्कृति, संस्कार, रीति-रिवाज, खान-पीन आ पाबनि-तिहार,एहि क्षेत्र के एकटा विशिष्ट पहचान दियाबति अछि.छठि महापाबनि के प्रात: कालीन अर्घ्य के उपरांत संध्या सं,भाई-बहिन के अटूट प्रेम’क प्रतीक प्रसिद्ध पाबनि सामा-चकेबा के आगमन मिथिला के आंगन में भ जाएत अछि। ई लोकपर्व भाई-बहन के अटूट प्रेम का प्रतीक माना जाइत अछि।एकर अंतर्गत बहिन पुर्णिया दिन तक रोज सामा-चकेबा, चुगला,सतभईया, झांझी कुकुर सुतनाहार हिनकर सबहक मूर्ति बनाकए प्रति संध्या गीतनाद के आनंद लैत छथि।आ पूजा विध पूरा करैत छथि। एहि पाबनि के खासतौर पर मिथिलांचल क्षेत्र में बहुत धूमधाम सं मनाओल जाइत अछि।पाबनि’क मध्य बहिन अपन भाई के दीर्घजीवन आ सम्पन्नता के मंगलकामना करैत छथि।सामा-चकेवा के पाबनि प्रकृति प्रेम सं संबद्ध सेहो अईछ।
पहिले मैथिलानी सब अपने हाथ सं मैटक सामा – चकेवा बनबैत छलीह। भिन्नभिन्न रंग सब सं ओकरा सजबैत छलीह|मुदा आब एहन किछु नहि होईत अछि| आब बजारे में रंग – बिरंग के रेडीमेड मैट’क बनल सामा – चकेवा के मूर्ति आसानी सं उपलब्ध भ जाएत अछि। मुदा आब किननाहार कम छथि। मिथिला के एहि संस्कृति पर आधुनिक जीवनशैली आ एकल परिवार में बृद्धि के कारणें ई परंपरा पर कसगर चोट पहुंचल अछि।तैयो एकर हाल जुडि शीतल स नीक अछि।मुदा बिक्री कम हेबाक कारणें एहि रोजगार सं जुड़ल लोक सब आन आन काज ताक आ कर लगलन्हि।कारण यैह जे आब मैथिलानी,ओहि उत्साहक संग सामा-चकेवा क पाबनि नहि मनब चाहैत छथि। मुदा एखनो सामा-चकेवा के अवसर पर गाम, शहर के कोनो कोना स सामा – चकेवा क गीत सुनबा मे ऐबे जाइत अछि।
सामा-चकेबा के एहि कथा संसार में,एक चरित्र अछि चुगला। जेना की नामे सं स्पष्ट अछि जे,ओ चुगली करैत अछि,आ झूठ बात पसारति अछि।जाहि कारणें सामा कें कठोर श्राप भोग पड़लन्हि। ताहि कारणें एहि पाबनिमे चुगले के मुंह जरा के कारी क देल जाएत अछि। जे सनेस अछि ओहेन दोहरा प्रवृत्ति के व्यक्ति सबहक लेल,जे क्षणिक सफलता पर प्रसन्न भ पाप पर पाप करैत जाइत छथि आ परिणाम’क चिन्ता नहि करैत छथि।
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