राष्ट्रीय अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत रैपिड एसेसमेंट आफ अवॉइडेबल ब्लाइंडनेस स्टडी का दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन।

आंखों की रौशनी के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां व फल का सेवन जरूरी।

#MNN@24X7 समस्तीपुर, राष्ट्रीय अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम के अंतर्गत रैपिड एसेसमेंट आफ अवॉइडेबल ब्लाइंडनेस स्टडी का दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन होटल स्वर्ग में साइट सेवरस संस्था के सहयोग से किया गया, प्रशिक्षण के दौरान प्रशिक्षक डॉक्टर अनंता वासुदेव ने बताया कि समस्तीपुर जिला अंतर्गत 50 वर्ष से अधिक आयु वर्ग के व्यक्तियों का रैब स्टडी किया जाना है, जिससे पता चलेगा कि कितने व्यक्ति अवॉइडेबल ब्लाइंडनेस विजुअल इंपेयरमेंट से ग्रसित हैं ताकि अंधापन नियंत्रण कार्यक्रम को और अधिक प्रभावी बनाया जा सके. यह स्टडी जिले के 6 प्रखंडों में किया जाएगा.

आज के दौर में इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद हमारे जीवन का अहम हिस्सा बन गए हैं। मोबाइल फोन, कंप्यूटर व टीवी आदि के बिना काम नहीं चलता,यानी ये हमारी लाइफ को सुविधाजनक बना रहे हैं।लेकिन दूसरी ओर इनके कारण नेत्र रोग या आंखों की समस्या से पीड़ित लोगों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है। आंकड़ों के मुताबिक, विश्व भर में कम से कम 1 अरब लोग निकट या दूर दृष्टि दोष के शिकार हैं। इसके अलावा बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक काफी लोग चश्मे का इस्तेमाल करते हैं।

वही लोगों को नेत्र रोगों और आंखों की देखभाल के प्रति जागरूक करने के लिए, विश्व स्वास्थ्य संगठन और अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिहीनता रोकथाम एजेंसी की पहल पर, वर्ष 2000 के बाद हर साल अक्टूबर महीने के दूसरे बृहस्पतिवार को विश्व दृष्टि दिवस मनाया जाने लगा है। प्रशिक्षक डॉक्टर कमल चक्रवर्ती ने बताया की बच्चों की आंखें संवेदनशील होती हैं. बच्चों में दृष्टिदोष के कारण उनका महत्वपूर्ण जीवनकाल प्रभावित होता है. इसके साथ ही बच्चों के आंखों में दर्द, लालिमा या भेंगापन होना जैसी समस्या भी होती है. ऐसी किसी समस्या को नजरअंदाज करना सही नहीं है.

बच्चों से उनके आंखों के विषय में करते रहें पूछताछ:

बच्चों में आंखों की समस्या का पता तब चलता है जब विशेषकर वे पढ़ने लिखने लगते हैं. ऐसे में स्कूल में एडमिशन कराने के समय बच्चों की आंखों की जांच जरूर करानी चाहिए. छह माह या एक साल में बच्चों के आंखों की जांच अवश्य कराये जाने चाहिए. बच्चों से समय समय पर पूछते रहें कि क्या वह पढ़ने लिखने या चलने फिरने, नजदीक या दूर की वस्तूओं को देखने आदि किसी परेशानी का सामना तो नहीं कर रहे हैं. आंखों में दर्द या ऐसी किसी प्रकार की समस्या की जानकारी लेते रहें. नजर कमजोर होने पर बच्चे करीब से टेलीविजन, मोबाइल या कंप्यूटर देखना चाहते हैं. कक्षा में बोर्ड पर लिखवायी जाने वाले अक्षरों की पहचान नहीं कर पाते और अक्सर वे अपने कॉपी पर कुछ भी नहीं लिख पाते हैं. किताबों को बहुत अधिक करीब से देखना बच्चों के आंखों की काली पुतली में सफेद रंग दिखाना, किसी वस्तू को देखते समय अपना सिर या चेहरा मोड़ना, आंखें मलना या पलक बहुत अधिक झपकाना, आंखों में खुजली होना आदि होने पर चिकित्सक से जरूर परामर्श लें.

खाने में शामिल करें हरी पत्तेदार सब्जियां व फल:

नेत्र चिकित्सक डॉ पवन कुमार ने बताया की आंखों के लिए विटामिन ए बेहद जरूरी है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक विटामिन ए बच्चों के आंखों की रोशनी तथा उनके शारीरिक विकास के लिए महत्वपूर्ण है. विटामिन ए प्राप्त करने के प्राकृतिक तरीकों को अपनाने के साथ स्वास्थ्य विभाग द्वारा दी जाने वाली विटामिन ए की खुराक भी दी जानी चाहिए. विटामिन ए की खुराक बच्चों के रोग प्रतिरोधक क्षमता को भी मजबूत बनाता है. बच्चों के खाने में हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी एवं ताजी सब्जियां और पीली एवं नारंगी रंग के फल आदि शामिल करें. पालक और गाजर में विटामिन ए काफी मात्रा में पाया जाता है.

आंखों को स्वस्थ और सामान्य रखने के टिप्स:

डॉ पवन ने बताया की-कंप्यूटर, टेलीविजन व मोबाइल का इस्तेमाल जरुरत से ज्यादा नहीं करना तथा प्रतिदिन छह से आठ गिलास पानी पीने के लिए पीना चाहिए.

पानी आंखों में नमी और ताजगी बनाये रखता है.

रात को पूरी नींद लेने दें.

रोजाना की दिनचर्या निर्धारित करें.

झुककर या लेटकर नहीं पढ़े दें.

हमेशा टेबल कुर्सी का इस्तेमाल करना चाहिए .

पढ़ने के आधे घंटे के दौरान पांच मिनट के लिए ब्रेक ले.

किताबों से एक फिट दूर रह कर पढ़े.

मौके पर साइट सेवरस संस्था के जिला कोऑर्डिनेटर अरविंद कुमार, प्रोजेक्ट ऑफिसर आदित्य कुमार एवं डॉक्टर आदि उपस्थित थे.