-शास्त्रोक्त विधि का पालन करने से पर्यावरण होगा संरक्षित – प्रो.देवनारायण झा।

-पर्यावरण दूषित होने से मानव में आत्मज्ञान का अभाव होगा।

-संस्कृत विश्वविद्यालय में एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन।

-पर्यावरण संरक्षण विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का हुआ आयोजन।

-पांच सत्रों में शोधपत्रों का किया गया वाचन।

-आभासीक तृतीय सत्र में देश के विभिन्न राज्यों से शिक्षकों एवं शोछ छात्र सम्मिलित होकर अपने शोधपत्रों का किया वाचन।

#MNN@24X7 दरभंगा, 26 मई, अमृत महोत्सव के परिप्रेक्ष्य में कामेश्वरसिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर व्याकरण विभाग एवं राष्ट्रीय सेवा योजना कोषांग के संयुक्त तत्त्वावधान में पर्यावरण संरक्षण विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गई । शुक्रवार को संस्कृत विश्वविद्यालय के सीनेट हॉल में केएसडीएसयू के वीसी प्रो.शशिनाथ झा, प्रोवीसी प्रो.सिद्धार्थ शंकर सिंह, पूर्व कुलपति प्रो.देवनारायण झा, पूर्व साहित्य विभागाध्यक्ष प्रो.लक्ष्मीनाथ झा वित्तीय परामर्श कैलाश राम ने संयुक्तरूप से दीप जलाकर संगोष्ठी का उद्धाटन किये।

अपने अध्यक्षीय संबोधन में कुलपति प्रो.शशिनाथ झा ने कहा कि मानव का जीवन ही पर्यावरण पर आधारित है। शास्त्रों में वर्णित पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न उपायों का विस्तार से चर्चा करते हुए दृढ़ता से संकल्प लेकर पर्यावरण को संरक्षित करने का आह्वान किया।प्रोवीसी सह विषय प्रवर्तक प्रो. सिद्धार्थशंकर सिंह ने संस्कृत वाङ्मय में वर्णित मन्त्रों का उदाहरण देते हुए कहा कि पर्यावरण संरक्षित होगा तभी हम सुरक्षित रह सकते हैं।

विशिष्टातिथि सह केएसडीएसयू के पूर्व कुलपति प्रो.देवनारायण झा ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण में शास्त्रों का महत्वपूर्ण योगदान है। शास्त्रोक्त विधि का पालन करने से ही पर्यावरण स्वयं संरक्षित हो जाएगी। अभिज्ञान शाकुन्तल में वर्णित आठ तत्वों का विस्तृत विवेचन करते हुए जल, पृथ्वी, वायु आदि को दूषित होने से बचाने का उपाय बताएं। विशिष्टातिथि प्रो.लक्ष्मीनाथ झा ने कहा कि शास्त्र हमेशा पर्यावरण की रक्षा करता है।

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय नई दिल्ली के पूर्व परीक्षा नियंत्रक डॉ. गोपीरमण मिश्र ने पर्यावरण संरक्षण के विभिन्न आयामों का पालन करने का आग्रह किया। वहीं डॉ.फूलचन्द्र मिश्र रमण ने गुरुत्वाकर्षण से पृथ्वी पर्यन्त पर्यावरण के स्थान का वर्णन करते हुए शोधछात्रों को इस ओर रुचि पूर्वक शोधकार्य करने का आह्वान किया।

कार्यक्रम की विस्तृत जानकारी देते हुए व्याकरण प्राध्यापक डॉ.रामसेवक झा ने बताया कि संगोष्ठी के द्वितीय सत्र में विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों, शोध छात्रों के अलावा देश के विभिन्न भागों से दर्जनों लोगों ने प्रत्यक्ष एवं आभासीय रूप से संगोष्ठी में सम्मिलित होकर अपने शोधपत्रों का वाचन किये । जिसमें सत्राध्यक्ष के रूप में प्रो.पुरेन्द्र वारिक, प्रो.रेणुका सिन्हा, डॉ.विनय कुमार मिश्र, डॉ.घनश्याम मिश्र, प्रो. दयानाथ झा, डॉ.विजय कुमार मिश्र उपस्थित थे। वहीं सत्र का संयोजन डॉ.धीरज कुमार पाण्डेय, डॉ.यदुवीर स्वरूप शास्त्री,डॉ.विश्वनाथ,ड़ॉ.वरुण कुमार झा, डॉ.रीतेश कुमार चतुर्वेदी तथा डॉ.शम्भु शरण तिवारी ने किया।

कार्यक्रम की समापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए केएसडीएसयू के पूर्व कुलपति प्रो.विद्याधर मिश्र ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण करना हमलोगों का पुनीत कर्तव्य है। समापन सत्र में बतौर मुख्यातिथि प्रो.जीवानन्द झा,कुलसचिव प्रो.दीनानाथ साह ने भी अपने अपने विचार प्रकट किये ।
कार्यक्रम की शुरुआत वेद विभाग के प्राध्यापक डॉ.सत्यवान कुमार के द्वारा वैदिक मंगलाचरण से हुई ।

आगत अतिथियों का स्वागत व्याकरण विभागाध्यक्ष सह कार्यक्रमाध्यक्ष प्रो.दयानाथ झा ने किया । कार्यक्रम का संचालन डॉ.साधना शर्मा एवं डॉ.एल.सविता आर्या ने संयुक्तरूप से की।

वहीं धन्यवाद ज्ञापन कार्यक्रम उपाध्यक्ष सह एनएसएस समन्वयक डॉ.सुधीर कुमार झा ने किया। कार्यक्रम में डॉ.दिलीप कुमार झा, डॉ.कुणाल कुमार झा, डॉ.पवन कुमार झा, डॉ.श्रवण कुमार, डॉ.रामसेवक झा, अमित कुमार, डॉ.विभव कुमार झा, डॉ.मुकेश प्रसाद निराला, डॉ.दिपेश कुमार चौधरी सहित दर्जनों प्रतिभागी उपस्थित थे। संगोष्ठी में सात दर्जन से अधिक शोध पत्रों का वाचन किया गया।