#MNN@24X7 बागपत। उत्तर प्रदेश के बागपत के खेकड़ा क्षेत्र में रावण उर्फ बड़ागांव के लोग लंकापति रावण में गहरी आस्था रखते हैं। रावण के सम्मान में यहां रामलीला का आयोजन नहीं होता है और न ही पुतला दहन होता है।प्रसिद्ध मां मंशा देवी मंदिर के प्रांगण में रावण कुंड भी है।बताया जाता है कि हिमालय से तपस्या के बाद लंका लौटते समय रावण ने जिस मार्ग का इस्तेमाल किया था।उस मार्ग की खोज की जा रही है। इतिहासकार वर्षों से इस पर शोध कर रहे हैं।
रावण उर्फ बड़ागांव का नाम लंकापति रावण से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि हिमालय पर तपस्या करके मां मंशा देवी को रावण ने प्रसन्न कर लिया था।इसके बाद रावण ने मंशा देवी से उनको लंका में स्थापित होने का वरदान मांगा था। इस पर देवी ने शर्त रख दी कि मैं मूर्ति के रूप में तुम्हारे कंधों पर सवार होकर लंका चलूंगी, लेकिन रास्ते में मेरी मूर्ति का भूमि से स्पर्श हो गया तो मैं वहीं प्रतिष्ठित हो जाऊंगी। रास्ते में बागपत के बड़ागांव के पास रावण को लघुशंका की इच्छा हुई तो उसने यहां एक ग्वाले को मूर्ति को संभालने के लिए दे दी।असल में ग्वाला स्वयं भगवान विष्णु थे। भगवान विष्णु ने मूर्ति को जमीन पर रख दिया। रावण लौटा तो मूर्ति को उठाने का बहुत प्रयास किया,लेकिन रावण के लाख प्रयासों के बाद भी देवी की मूर्ति भूमि से उठा न सका। इसके बाद रावण मां को प्रणाम कर लंका चला गया।देवी मां बड़ागांव में प्राचीन मंशा देवी मंदिर में विराजमान हैं। तब से बडागांव का नाम भी रावण पड़ गया। मंशा देवी मंदिर में विष्णु की प्राचीन मूर्ति भी मौजूद है।विष्णु की मूर्ति को इतिहासकार आठवीं शताब्दी की बताते हैं।
लंकापति के नाम पर बड़ागांव रावण।
रावण बुराइयों का प्रतीक है।सीता हरण के बाद श्रीराम ने लंकापति को मारा।लंकापति का नाम आते ही भले ही लोग घृणा करें,लेकिन बागपत जिले के बडागांव को रावण के नाम से जाना जाता है।बड़ा गांव उर्फ रावण में दशहरा तो मनाया जाता है,लेकिन कभी रावण का पुतला नहीं जलाते। असल में हिमालय से लंका जाते वक्त रावण मंशा देवी की मूर्ति लेकर बड़ा गांव रुके थे। हालांकि देवी यहीं स्थापित हो गईं। गांव वाले कहते हैं कि लंकापति की वजह से ही मंशा देवी उनके गांव में स्थापित हुई। इस कारण यहां कभी उनके पुतले का दहन नहीं करने की परंपरा है।खेकड़ा के पास बसे रावण उर्फ बड़ागांव को जैन मंदिर और मंशा देवी मंदिर की वजह से भी जाना जाता है। यहां दूरदराज से श्रद्धालुओं की आवाजाही रहती है।
ग्राम प्रधान दिनेश त्यागी, प्रदीप त्यागी, राजपाल त्यागी, आदि का कहना है कि भगवान राम में गांव वालों की पूरी आस्था है, लेकिन महाज्ञानी रावण भी ग्रामीणों के दिल में बसे हैं। मंशा देवी मंदिर परिसर में उनके नाम से रावण कुंड मौजूद है।गांव में वर्षों से रामलीला या रावण का पुतला दहन नहीं होता।
ग्राम प्रधान ने बताया कि रावण की वजह से उनके गांव में मंशा देवी का मंदिर बना और मूर्ति की स्थापना हो सकी। यही वजह है कि यहां कभी रावण का पुतला नहीं जलाया जाता। ग्रामीण कहते हैं कि दशहरा पूजा पाठ कर मनाते हैं, लेकिन कभी दशानन का पुतला नहीं जलाते।गांव के रकबे में रावण कुंड के नाम से भी तालाब है। इसका जीर्णाेद्वार कराने का प्रयास किया जा रहा है।
गांव वाले कहते हैं कि रावण में लाख बुराईयां थी,लेकिन उनके नाम से गांव को पहचान मिली। वह देवी और शिव के पक्के भक्त है। गांव में रावण की मूर्ति स्थापित करने का विचार है, इस पर जल्द ही ग्रामीणों की बैठक बुलाई जाएगी।
(सौ स्वराज सवेरा)