आज दिनांक 01.08.2022 को प्रेमचंद जयंती के अवसर पर विश्वविद्यालय हिंदी विभाग, ललित नारायण मिथिला विश्वविद्यालय, दरभंगा में संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
प्रो० राजेन्द्र साह ने संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहा कि प्रेमचंद ने इतनी महत्त्वपूर्ण रचनाएँ कीं कि अगर उनपर विमर्श किया जाय तो बातें वर्षों चल सकती हैं। वे साहित्य के सच्चे साधक थे। मानवीय मूल्यों के प्रणेता थे|भारतवर्ष की सभी कुरीतियों एवं समस्याओं पर उन्होंने गम्भीरता से प्रकाश डाला। वे वस्तुतः मूक जनता की आवाज़ थे। वाणी को विराम देते हुए उन्होंने कहा कि उनकी भाषा की सरलता जगजाहिर है।
मुख्य वक्ता बी.एम.ए. कॉलेज बहेड़ी के हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रो० उमेश कुमार उत्पल ने इस अवसर पर कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में आजादी की बात जहाँ-जहाँ आयी है उसपर नए दृष्टिकोण से भी विचार किया जाना चाहिए। उनकी आरंभिक कहानियों में आज़ादी की ललक स्पष्ट दिखाई पड़ती है। अंग्रेजों ने उनपर राष्ट्रद्रोह का आरोप भी लगाया लेकिन उनकी लेखनी को रोक नहीं सके। उन्होंने कहा कि भाषा की सरलता उनमें इस कदर थी कि आज भी किसी भी रेलवे स्टेशन पर जाएं, उनकी रचनायें सहज ही उपलब्ध हो जाती हैं।
विषय का प्रवर्तन करते हुए डॉ० आनन्द प्रकाश गुप्ता ने कहा कि ‘गोदान’ और ‘कफ़न’ प्रेमचंद की कालजयी रचनाएं हैं। वस्तुतः प्रेमचंद के सम्पूर्ण साहित्य का मर्म इन दोनों रचनाओं में समाहित है। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति भूख से पीड़ित हो वह अगर कफ़न के पैसों से भोजन कर ले तो यह कहीं से गलत नहीं कहा जाएगा। ‘गोदान’ की मार्मिक कथा पर भी उन्होंने प्रकाश डाला।
सहायक प्राचार्य श्री चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि प्रेमचंद के बराबर हिंदी में कोई दूसरा उपन्यासकार नहीं हुआ। ‘ठाकुर का कुआं’ जैसी कहानियों का सृजन कर दलितों की पीड़ा को आवाज़ देनेवाले प्रेमचंद ने हिंदी साहित्य में दलित विमर्श की शुरुआत की।
सहायक प्राचार्य डॉ० आलोक प्रभात ने इस अवसर पर कहा कि छात्र जीवन में प्रेमचंद को अगर नहीं पढ़ा तो कुछ नहीं पढ़ा। उन्होंने आग्रह किया कि हिंदी के सभी छात्रों को एक बार ‘गोदान’ ज़रूर पढ़ना चाहिए। अंग्रेजों के दमन के दौर में जिस प्रकार उन्होंने साहित्य का सृजन किया वह अतुलनीय है।
वरीय शोधप्रज्ञ अभिषेक कुमार सिन्हा ने कहा कि प्रेमचंद ने शोषितों, दलितों और पीड़ितों को आवाज़ दी। ‘सद्गति’ और ‘ठाकुर का कुआँ’ जैसी कहानियों ने हिंदी साहित्य को नई दिशा दी।
वरीय शोधप्रज्ञ धर्मेन्द्र दास ने कहा कि प्रेमचंद का लेखन छूआछूत,सामाजिक भेदभाव, अशिक्षा, गरीबी आदि तमाम त्रासदियों का जीवंत दस्तावेज है।
कनीय शोधप्रज्ञ सियाराम मुखिया ने कहा कि प्रेमचंद का साहित्य क्षेत्र में आगमन के साथ हिंदी साहित्य में नयी शुरुआत होती है।
मंच का संचालन वरीय शोधप्रज्ञ कृष्णा अनुराग ने किया तथा धन्यवाद- ज्ञापन सियाराम मुखिया ने किया