जय जय भैरवि असुर भयाउनि,
पशुपति-भामिनि माया ।
सहज सुमति वर दियउ गोसाञुनि,
अनुगत-गति तुअ पाया।

वासर रैनि शवासन शोभित,
चरण चन्द्रमणि-चूड़ा ।
कतओक दैत्य मारि मुखमेलल,
कतओ उगिलि कैल कूड़ा।
जय जय भैरवि……

सामर वरन नयन अनुरञ्जित,
जलद योग फुल कोका।
कट कट विकट ओठ फुट पाँड़रि,
लिधुरि फेन उठ फोका ॥
जय जय भैरबी….

घन घन घनन घुंघुंर कत बाजय,
हनहन कर तुअ काता।
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र बिसरि जनु माता ॥

महाकवि विद्यापति 💐🙏